Maharashtra State Board Class 12th Hindi Question Paper 2022 with Solutions Answers Pdf Download.
Class 12 Hindi Question Paper 2022 Maharashtra State Board with Solutions
Time: 3 Hours
Max Marks: 80
विभाग – १ द्य (अंक-२०)
कृति १
(अ) निम्नलिखित गद्यांश पढ़कर सूचना के अनुसार कृतियाँ पूर्ण कीजिए: (६)
“वे मुझे बर्दाश्त नहीं कर सकते, यदि मुझ पर हँसे नहीं। मेरी मानसिक और नैतिक महत्ता लोगों के लिए असहनीय है। उन्हें उबाने वाली खूबियों का पुँज लोगों के गले के नीचे कैसे उतरे ? इसलिए मेरे नागरिक बंधु या तो कान पर उँगली रख लेते हैं। या बेवकूफी से भरी हँसी के अंबार के नीचे ढँक देते हैं मेरी बात।” शॉ के इन शब्दों में अहंकार की पैनी धार है, यह कहकर हम इन शब्दों की उपेक्षा नहीं कर सकते क्योंकि इनमें संसार का एक बहुत ही महत्त्वपूर्ण सत्य कह दिया गया है।
संसार में पाप है, जीवन में दोष, व्यवस्था में अन्याय है, व्यवहार में अत्याचार और इस तरह समाज पीड़ित और पीड़क वर्गों में बँट गया है। सुधारक आते हैं, जीवन इन विडंबनाओं पर घनघोर चोट करते हैं। विडंबनाएँ टूटती – बिखरती नजर आती हैं पर हम देखते हैं कि सुधारक चले जाते हैं और विडंबनाएँ अपना काम करती रहती हैं।
आखिर इसका रहस्य क्या है कि “संसार में इतने महान पुरुष, सुधारक, तीर्थंकर, अवतार संत और पैगंबर आ चुके लाभ नहीं है पर यह संसार अभी तक वैसा का वैसा ही चल रहा है।
(१) आकृति पूर्ण कीजिए: (२)
(१) संसार में : ……….
उत्तर:
संसार में : पाप
(२) जीवन में : ………….
उत्तर:
जीवन में : दोष
(३) व्यवस्था में : ………….
उत्तर:
व्यवस्था में : अन्याय
(४) व्यवहार में : ……….
उत्तर:
व्यवहार में : अत्याचार
(२) निम्नलिखित शब्दों के लिए गद्यांश में आए हुए शब्दों के समानार्थी शब्द लिखिए: (२)
(१) ढेर : ………
उत्तर:
ढेर : अंबार
(२) धारदार : ……..
उत्तर:
धारदार : पैनीधार
(३) शोषक : …….
उत्तर:
शोषक : पीड़क
(४) उपहास : ……..
उत्तर:
उपहास : बिडम्बना
३. ‘समाजसेवा ही ईश्वरसेवा है’ इस विषय पर अपने विचार ४० से ५० शब्दों में लिखिए । (२)
उत्तर:
समाजसेवा ही ईश्वर सेवा है। आप अपने समाज के अपने देश के प्रति, अपने परिवार के प्रति कर्त्तव्य से विमुख होकर यदि ईश्वर की सेवा करते हैं तब ईश्वर आपको कभी भी पसन्द नहीं करेगा क्योंकि वास्तव में जनसेवा ही ईश्वर सेवा होती है।
यदि आप समाज की हर सम्भव सेवा करते हैं, मदद करने का प्रयास करते हैं तो यह आपका ईश्वरसेवा की ओर बड़ा कदम, आपको सफल बना देगा। जिन लोगों को मदद की जरूरत है, ऐसे लोगों की मदद करना किसी ईश्वर की सेवा करने से कम नहीं है। यदि आप किसी कारण लोगों की सेवा नहीं कर सकते, तो आप अपना काम ईमानदारी से करें तब भी यह एक प्रकार की जनसेवा ही है।
पीड़ित व्यक्ति की नि:स्वार्थ भावना से सहायता करना ही समाज-सेवा है और ‘समाजसेवा’ करना ही सच्चे अर्थ में ‘ईश्वरसेवा’ है।
(आ) निम्नलिखित गद्यांश पढ़कर सूचना के अनुसार कृतियाँ पूर्ण कीजिए: (६)
बदले वक्त के साथ बदलते समय के नये मूल्यों को भी (पहचानकर हमें अपनाना है पर यहाँ ‘पहचान’ शब्द को रेखांकित करो। बिना समझे बिना पहचाने कुछ भी नया अपनाने से लाभ के बजाय हानि उठानी पड़ सकती है।
पश्चिमी दुनिया का हर मूल्य हमारे लिए नये मूल्य का पर्याय नहीं हो सकता। हमारे बहुत-से पुराने मूल्य अब इतने टूट-फूट गए हैं कि उन्हें भी जैसे-तैसे जोड़कर खड़ा करने का मतलब होगा, अपने आधार को कमजोर करना। या यूँ भी कह सकते हैं कि अपनी अच्छी परम्पराओं को रूढ़ि में ढालना ।
समय के साथ अपना अर्थ खो चुकी या वर्तमान प्रगतिशील समाज को पीछे ले जाने वाली समाज की कोई भी रीति-नीति रूढ़ि है, समय के साथ अनुपयोगी हो गए मूल्यों को छोड़ती और उपयोगी मूल्यों को जोड़ती निरन्तर बहती धारा परम्परा है, जो रूढ़ि की तरह स्थिर नहीं हो सकती ।
यही अंतर है दोनों में रूढ़ि स्थिर है, परम्परा निरन्तर गतिशील। एक निरन्तर बहता निर्मल प्रवाह, जो हर सड़ी-गली रूढ़ि को किनारे फेंकता और हर भीतरी बाहरी, देशी-विदेशी उपयोगी मूल्य को अपने में समेटता चलता है। इसीलिए मैंने पहले कहा है कि अपने टूटे-फूटे मूल्यों को भरसक जोड़कर खड़ा करने से कोई लाभ नहीं, आज नहीं तो कल, वे जर्जर मूल्य भर-भरहराकर गिरेंगे ही।
(१) कारण लिखिए: (२)
(१) बदले वक्त के साथ नए मूल्यों को पहचानकर हमें अपनाना है:
उत्तर:
क्योंकि बिना पहचाने कुछ भी नया अपनाने से लाभ के बजाय हानि उठानी पड़ सकती है।
(२) अपने टूटे-फूटे मूल्यों को भरसक जोड़कर खड़ा करने से कोई नहीं है
उत्तर:
क्योंकि आज नहीं तो कल, वे जर्जर मूल्य भरहराकर गिरेगें ही।
(२) उपर्युक्त गद्यांश में प्रयुक्त शब्द-युग्म ढूँढ़कर लिखिए: (२)
उत्तर:
(१) टूट – फूट
(२) रीति – नीति
(३) सड़ी – गली
(४) देशी – विदेशी
(३) ‘बदलते समय के साथ हमारे मूल्यों में भी परिवर्तन आवश्यक है’ इस विषय पर अपना मत ४० से ५० शब्दों में स्पष्ट कीजिए ।
उत्तर:
समाज गतिशील है और समय के साथ परिवर्तन आवश्यक है। सामाजिक मूल्यों में परिवर्तन होने के कारण धन, शिक्षा तथा सरकारी पदों का महत्व अधिक बढ़ गया है। इस प्रकार के परिवर्तन प्रत्येक समाज में अत्यंत धीमी गति से होते हैं। वर्तमान युग समस्याओं का युग है।
सम्पूर्ण विश्व आजकल कई प्रकार की सामाजिक समस्याओं से जूझ रहा है। मूल्यों का महत्व प्रत्येक अवस्था में स्वीकार किया जाता है। मूल्य में परिवर्तन से मूल्यों का विकास होता है। मूल्य विकास की स्थिति सामाजिक, आर्थिक एवं राजनैतिक विकास को सूचित करती है। मूल्य का महत्व प्रत्येक क्षेत्र में स्वीकार किया जाता है। इसलिए बदलते समय के साथ-साथ हमारे मूल्यों में भी परिवर्तन आवश्यक है ।
(इ) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लगभग ८० से १०० शब्दों में लिखिए (कोई दो) : (६)
(१) ‘बैजू बावरा संगीत का सच्चा पुजारी है’ इस विचार को स्पष्ट कीजिए ।
उत्तर:
बैजू बावरा को संगीत का सच्चा पुजारी माना जाता है क्योंकि उनका जीवन संगीत के प्रति अपनी अदम्य भक्ति और समर्पण को दर्शाता है। वे ऐसे कलाकार थे जिन्होंने अपने संगीत के माध्यम से न केवल लोगों के हृदयों को छुआ बल्कि समाज में संगीत के प्रति एक नई सोच और समझ विकसित की।
उनकी गायकी में गहराई और भावनाओं का ऐसा संगम था जो श्रोताओं को आध्यात्मिक आनंद की अनुभूति कराता था। बैजू बावरा ने संगीत के विविध रूपों को अपनाया और उन्हें एक नई पहचान दी, जिससे उनका संगीत केवल एक कला न रहकर एक आध्यात्मिक प्रयास बन गया। उनकी संगीत साधना में जो एकाग्रता और तपस्या थी, वह उन्हें संगीत का एक सच्चा पुजारी साबित करती है।
(२) ओजोन विघटन संकट से बचने के लिए किए गए अंतर्राष्ट्रीय प्रयासों को संक्षेप में लिखिए।
उत्तर:
ग्रीन हाउस के प्रभाव के कारण धरती का तापमान निरंतर बढ़ रहा है। तापमान बढ़ने से ध्रुवों पर जमी विशाल बर्फ राशि पिघल रही है। जिससे हिमनद के सूखने तथा समुद्री जलस्तर के बढ़ने की संभावना के साथ ही जलवायु परिवर्तन के खतरे संसार के सामने मौजूद हैं। इससे चिंतित दुनिया के अनेक देशों के लोगों ने मिलकर 1985 में विएना में एक बैठक की। इसके ठीक दो वर्ष बाद 1987 में कनाडा के मांट्रियल शहर में दुनिया के 48 देशों का सम्मेलन हुआ। इस बैठक में जिस मसौदे को अंतिम रूप दिया गया, उसे ‘मांट्रियल प्रोटोकॉल’ के नाम से जाना जाता है।
इसके प्रावधान में कहा गया कि दुनिया के सभी देश 1995 तक 50% सी. एफ. सी खपत की कटौती कर देंगे। ठीक दो वर्ष बाद यह कटौती 85% तक हो जाएगी। विकासशील देशों का कहना था कि इस पर आने वाला खर्च धनी देश वहन करें क्योंकि ओजोन विघटन के लिए जिम्मेदार भी यही हैं। 1990 के ताजा आँकड़े के अनुसार सी. एफ.सी की खपत दुनिया में 12 लाख टन तक पहुँच गई। जिसमें अमेरिका की हिस्सेदारी ही 30% थी जो भारत की तुलना में 50 गुना अधिक थी।
ओजोन विघटन की समस्या पर विचार करने के लिए लंदन में एक बैठक हुई जिसमें नए प्रशीतनों की खोज तथा पुराने उपकरणों के विस्थापन के लिए एक कोष बनाने की माँग की गई। समझौते के तहत यह व्यवस्था है कि सन् 2010 तक विकासशील देश सी. एफ. सी का इस्तेमाल बंद कर देंगे और विकसित देश उनकी आर्थिक मदद करेंगे।
(३) ‘सुनो किशोरी’ पाठ के आधार पर रूढ़ि परम्परा तथा मूल्यों के बारे में लेखिका के विचार स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
‘सुनो किशोरी’ पाठ के माध्यम से लेखिका किशोरियों को सही मार्गदर्शन देते हुए आगाह करती हैं कि हमें पुरानी और जर्जर रूढ़ियों को तोड़ना है किंतु हमारी अच्छी परंपराओं को जीवित रखना भी आवश्यक है। हमें आसमान में उड़ान भरनी है किंतु हमारी निगाहें धरती पर टिके रहना भी जरूरी है। बदलते वक्त के साथ ही साथ नए मूल्यों को भी सोच-समझकर और पहचानकर अंगीकृत करना है। बिना सोचे-विचारे अंधाधुंध नकल करने मात्र से लाभ की जगह हानि उठानी पड़ सकती है।
हमें पश्चिमी देशों के मूल्यों को भी सोच-विचार (समझकर) अपने परिवेश और परंपराओं को ध्यान में रखकर अपनाना पड़ेगा। टूटी-फूटी और जर्जर मूल्यों को छोड़कर अच्छी परंपराओं एवं संस्कारों की रक्षा करके हम प्रगतिशीलता के पथ पर आगे बढ़ सकते हैं।
नए मूल्यों का निर्माण करना तथा ज्ञान-विज्ञान को अंगीकार करना हमारा ध्येय होना चाहिए। समय के प्रवाह में क्रांति की बड़ी-बड़ी बातें करना और एक झटके में टूट-हार कर बैठ जाना मूर्खता के सिवा और कुछ नहीं कहा जा सकता। बदलते हुए परिवेश में हमें यह ध्यान रखना होगा कि पाश्चात्य मूल्यों का अंधानुकरण कहीं हमारे विकास की जगह विनाश के कारण न बन जाए।
(ई) निम्नलिखित प्रत्येक प्रश्न का मात्र एक वाक्य में उत्तर लिखिए (कोई दो) :
(१) सुदर्शन जी का मूल नाम लिखिए।
उत्तर:
सुदर्शन जी का मूल नाम बदरीनाथ है।
(२) कन्हैयालाल मिश्र ‘प्रभाकर’ जी के निबन्ध संग्रहों के नाम लिखिए।
उत्तर:
कन्हैयालाल मिश्र ‘प्रभाकर’ जी के निबन्ध संग्रहों के नाम हैं-
(१) जिन्दगी मुस्कुराई,
(२) बाजे पायलिया के घूँघरू,
(३) जिन्दगी लाहलहाई,
(४) महके आँगन चहके द्वार ।
(३) सुदर्शन ने इस लेखक की लेखन परम्परा को आगे बढ़ाया है।
उत्तर:
सुदर्शन ने मुंशी प्रेमचन्द की लेखन परम्परा को आगे बढ़ाया है।
(४) आशारानी व्होरा जी की रचनाएँ लिखिए।
उत्तर:
आशारानी व्होरा जी की रचनाएँ- ‘भारत की प्रथम महिलाएं: ‘स्वतंत्रता सेनानी लेखिकाएं, ‘क्रांतिकारी किशोरी’, ‘स्वाधीनता सेनानी, ‘ ‘ लेख पत्रकार’ आदि ।
विभाग- २ पद्य (अंक-२०)
कृति २
(अ) निम्नलिखित पद्यांश पढ़कर सूचना के अनुसार कृतियाँ पूर्ण कीजिए: (६)
ते गति मिति तू ही जाणै क्या को आखि वखाणे
तू आपे गुपता, आपे प्रगटु, आपे सब रंग भाणे
साधक सिद्ध, गुरु वहु चेले खोजत फिरहि फरमाणे
समहि बधु पाइ इह भिक्षा तेरे दर्शन कउ कुरवाणे
उसी की प्रभु खेल रचाया, गुरमुख सोभी होई
नानक सब जुग आपे वरते, दूजा और न कोई ॥
गगन में काल रविचंद दीपक बने ।
तारका मंडल जनक मोती।
धूप मलयानिल, पवनु चँवरो करे,
सकल वनराई कुलंत जोति ।
कैसी आरती होई भव खंडना, तोरि आरती |
अनाहत शब्द बाजत भेरी ॥
(१) कृति पूर्ण कीजिए: (२)
उत्तर:
(२) उचित मिलान कीजिए: (२)
उत्तर:
ईश्वर → प्रभु
आकाश → गगन
समय → काल
खोज → खोजता
(3) विद्यार्थी जीवन में गुरु का महत्व’ इस विषय पर अपने विचार ४० से ५० शब्दों में लिखिए। (२)
उत्तर:
विद्यार्थी जीवन में गुरु की भूमिका अधिक महत्वपूर्ण होती है। विद्यार्थी जब जीवन में सही और गलत का फर्क नहीं समझ पाते, लब गुरु ही इस अन्तर को सिखाते हैं। जिन्दगी में सही रास्ता दिखाने का काम शुरु करते हैं। विद्यार्थी अपने जीवन में कठिन परिस्थिति में या किसी भी संकट का सामना निडर होकर करने का साहस गुरु बाँधाते हैं। गुरु की शिक्षा से विद्यार्थी विषम परिस्थितियों को धैर्य के साथ पार कर सकता है। विद्यार्थी को सफल बनाना और उन्हें सही मार्ग हेतु प्रशस्त करना ही गुरु का प्रमुख उद्देश्य होता है। गुरु सदैव विद्यार्थी को सफलता की चोटी पर विराजमान देखना चाहते हैं। हर विद्यार्थी के जीवन में गुरु का विशेष महत्व होता है। इसी कारण विद्यार्थी को जीवनपर्यन्त गुरु जी का सम्मान करना आवश्यक है।
(आ)
निम्नलिखित पद्यांश पढ़कर सूचना के अनुसार कृतियाँ पूर्ण कीजिए: (६)
गजलों से खुशबू बिखराना हमको आता है।
चट्टानों पर फूल खिलाना हमको आता है।
परिंदों को यह शिकायत है, कभी तो सुन मेरे मालिक ।
तेरे दानों में भी शायद, लगा है घुन मेरे मालिक।
हम जिंदगी के चंद सवालों में खो गए।
सारे जवाब उनके उजालों में खो गए।
चट्टानी रातों को जुगनू से वह सँवारा करती है।
बरसों से इक सुबह हमारा नाम पुकारा करती है।
(१) कृति पूर्ण कीजिए: (२)
(१) उत्तर लिखिए (१)
* परिंदों को यह शिकायत है : …………
उत्तर:
परिन्दों को यह शिकायत है, हे मालिक ! कभी तो हमारी बात सुनी। ऐसा प्रतीत होता है कि जो दाना आपकी कृपा से हमें प्राप्त होता है, उसमें भी कीड़े लगे हैं।
(२) परिणाम लिखिए (१)
* हम जिंदगी के चंद सवालों में खो गए: ……
उत्तर:
कवि जिन्दगी के चन्द सवालों में खो गए ऐसा हुआ कि कवि के सवालों के जवाब उनके उजालों में खो गए।
(२) उपर्युक्त पद्यांश में आए हुए हिन्दी शब्दों के उर्दू शब्द लिखिए: (२)
(१) पक्षी : …………..
उत्तर:
पक्षी : परिन्दे
(२) सपना : …….
उत्तर:
सपना : ख्याब
(३) प्रश्न : ……….
उत्तर:
प्रश्न : सवाल
(४) उत्तर : ……..
उत्तर:
उत्तर : जवाब
(3) ‘व्यक्ति को अपने जीवन में हमेशा कर्मरत रहना चाहिए’ इस कथन के सम्बन्ध में अपने विचार ४० से ५० शब्दों में लिखिए: (२)
उत्तर:
प्रत्येक व्यक्ति को जीवन में निरन्तर कर्मरत रहना चाहिए। निरन्तर कर्म से हम अपना उद्देश्य पूर्ण कर सकते हैं। जीवन में सफलता प्राप्त करने के लिए कठोर परिश्रम की आवश्यकता होती है। निरन्तर परिश्रम से हम सफलता को प्राप्त कर सकते हैं। निरन्तर कर्म से व्यक्ति को कठिन कार्य भी सुलभ लगने लगते हैं। कर्म में निरन्तरता सफलता की कुंजी है। वही व्यक्ति जीवन में यश प्राप्त करता है। प्रत्येक व्यक्ति में कुछ विशेष गुण, विशेष प्रतिभा होती है।
जरूरत है, उन गुणों को पहचानकर, उसी पर ध्यान केन्द्रित कर निरन्तर अभ्यास करना । तभी हम अपने लक्ष्य को प्राप्त कर सकते हैं। कर्म करना जीवित तथा आलस्य मृत होने की निशासी है। मनुष्य शरीर का सबसे बड़ा शत्रु है और कर्म व्यक्ति का बहुत पुराना और सच्चा मित्र है।
(इ) निम्नलिखित मुद्दों के आधार पर ‘पेड़ होने का अर्थ’ कविता का रसास्वादन कीजिए: (६)
(१) रचनाकार का नाम (१)
उत्तर:
रचनाकार का नाम – डॉ. मुकेश गौतम ।
(२) पसंद की पंक्तियाँ (१)
उत्तर:
पसंद की पंक्तियाँ – इस कविता की पसंद की पंक्तियाँ इस प्रकार हैं:
जी हाँ, सच तो यह है कि
पेड़ संत है, दधीचि हैं।
(३) पसंद आने के कारण (२)
उत्तर:
पसदं आने के कारण उपर्युक्त पंक्तियों में कवि ने स्पष्ट किया है कि, पेड़ संत के समान है, सदैव परोपकार की भावना रखते हैं। पेड़ दधीचि है। जिस प्रकार दधीचि ने देवताओं की रक्षा के लिए बज्रास्त्र हेतु जीते-जी अपनी अस्थियाँ भी दान कर दी। उसी प्रकार पेड़ निःस्वार्थ होकर जीवन भर हमें प्राणवायु देते हैं।
(४) कविता की केंद्रीय कल्पना (२)
उत्तर:
कविता की केन्द्रीय कल्पना सब कुछ दूसरों को देकर जीवन की सार्थकता सिद्ध करना। पेड़ मनुष्य का बहुत बड़ा शिक्षक हैं। पेड़ मनुष्य का हौसला बढ़ाता है। वह उसे समाज के प्रति जिम्मेदारी का निर्वाह करना सिखाता है। पेड़ ने भारतीय संस्कृति की जीवित रखा है और उसने मानव को संस्कारशील बनाया है।
अथवा
जीवन के अनुभवों और वास्तविकता से परिचित कराने वाले वृंद जी के दोहों का रसास्वादन कीजिए।
(ई) निम्नलिखित प्रत्येक प्रश्न का केवल एक वाक्य में उत्तर लिखिए। (कोइ दो) (२)
उत्तर:
कवि वृंद ने अपने लोकप्रिय दोहों के माध्यम से जीवन के अनुभवों से परिचित कराया है। कवि व्यावहारिक ज्ञान से परिचय कराते हुए कहते हैं कि ज्ञान के भण्डार की एक विशेषता है कि इसे जितना साझा किया जाए यह उतना ही बढ़ता है। यदि ज्ञान साझा न किया जाए तो यह निरन्तर घटता जाता है।
वहीं नेत्रों के द्वारा भाव समझ लेने के सन्दर्भ में कहते हैं कि जिस प्रकार दर्पण व्यक्ति की वास्तविक छवि बताता है उसी प्रकार किसी व्यक्ति के मन में दूसरे व्यक्ति के प्रति स्नेह या द्वेष का भाव है यह बात उसके नेत्रों को देखकर ज्ञात की जा सकती है।
इसी तरह व्यापार करने वालों को सचेत करते हुए उन्होंने कहा है कि वे व्यापार में छल-कपट का सहारा न लें। क्योंकि इससे व्यापारी अपना ही नुकसान करते हैं। किसी के सहारे मनुष्य को हाथ पर हाथ धरे निष्क्रिय नहीं बैठ जाना चाहिए। अपना कर्म करते रहना चाहिए। इसी प्रकार कवि वृंद जी कहते हैं कि कुटिल व्यक्तियों के मुँह नहीं लगना चाहिए क्योंकि वह कुछ ऐसा भला-बुरा सुना सकता है, जो आपको अप्रिय हो ।
कवि वृंद जी कहते हैं कि अपने आप को बड़ा बताने से कोई बड़ा नहीं होता, जिसमें बड़प्पन के गुण होते हैं, उसी को लोग बड़ा मनुष्य मानते हैं। गुणों के सन्दर्भ में उनका मत यह है कि जिसके अन्दर जैसा गुण होता है, उसे वैसा ही लाभ मिलता है। जैसे कोयल को मधुर आम मिलता है, वैस ही कौए को कड़वी निबौली।
वृंदजी के मतानुसार बिना सोचे-विचारे किया गया कोई भी काम नुकसानप्रद हो सकता है।
वह कहते हैं कि जैसे किसी पौधे के पत्तों को देखकर उसकी प्रगति का पता चलता है, उसी प्रकार बच्चे के अच्छे-बुरे होने के लक्षण पालने में ही दिखायी दे जाते हैं।
कवि वृंदजी एक अनूठी बात बताते हुए कहते हैं कि संसार की किसी भी चीज को खर्च करने से या उसका उपयोग करने से वह कम होता है, परन्तु ज्ञान एक ऐसी वस्तु है, जिसके भण्डार को जितना खर्च करने या उपयोग में लाओ वह उतना ही बढ़ जाता है। यदि ज्ञान को उपयोग में नहीं लाया जाए तो वह नष्ट हो जाता है, यह उसकी विशेषता है।
इस प्रकार वृंदजी ने विविध प्रतीकों की उपमाओं के द्वारा अपनी बात को अत्यन्त प्रभावशाली ढंग से व्यक्त किया है। दोहों का प्रसाद गुण उनकी बात को स्पष्ट करने में सहायक होता है।
(१) त्रिलोचन जी के दो काव्य संग्रहों के नाम लिखिए।
उत्तर:
त्रिलोचन के दो काव्य संग्रहों के नाम-
(१) धरती
(२) सवा का अपना आकाश
(२) वृंद जी की प्रमुख रचनाएँ लिखिए।
उत्तर:
वृंदजी की प्रमुख रचनाएँ इस प्रकार हैं- वृंद सतसई समेत शिखर छंद, भाव पंचारिका, पवन पचीसी, हितोपदेश, यमक सतसई, वचनिका तथा सत्यस्वरूप आदि ।
(३) डॉ. मुकेश गौतम जी की रचनाएँ लिखिए।
उत्तर:
डॉ. मुकेश गौतम जी की रचनाएँ-
(१) अपनों के बीच,
(२) सतह और शिखर,
(३) सच्चाइयों के रू-ब-रू
(४) वृक्षों के हक में,
(५) लगातार कविता,
(६) प्रेम समर्थक हैं पेड़
(७) इसकी क्या जरूरत थी (कविता संग्रह)
(४) दोह छन्द की विशेषताएँ बताइए।
उत्तर:
दोहा अर्द्ध सम मात्रिक छन्द है। इसके चार चरण होते हैं। बोहे के प्रथम और तृतीय (विषम चरण में १३ – १३ मात्राएँ होती हैं, तथा द्वितीय और चतुर्थ (सम) चरणों में ११ – ११ मात्राएँ होती हैं। दोहे के प्रत्येक चरण के अन्त में लघु वर्ण आता है।
जैसे- सरसुति के भण्डार की बड़ी अपूरक बात ।
(१) १३ मात्रा
(२) ११ मात्रा
जैसे-ज्यों खरचै त्यों-ज्यों बढ़े, बिन खरचे घटि ‘जात’ ।
(३) १३ मात्रा
(४) ११ मात्रा
विभाग – ३ विशेष अध्ययन (अंक-१०)
कृति ३
(अ) निम्नलिखित पद्यांश पढ़कर सूचना के अनुसार कृतियाँ पूर्ण कीजिए: (६)
नीचे की घाटी से
ऊपर के शिखरों पर
जिसको जाना था वह चला गया
हाय मुझी पर पग रख
मेरी बाँहों से
इतिहास तुम्हें ले गया।
सुनो कनु, सुनो
क्या मैं सिर्फ एक सेतु थी तुम्हारे लिए
लाभूमि और युद्धक्षेत्र के
अलध्य अतंराल में।
अब इन सूने शिखरों, मृत्यु घाटियों में बने
सोने के पतले गूँथे तारोंवाले पुल – सा
निर्जन
निरर्थक
काँपता-सा, यहाँ छूट गया मेरा यह सेतु जिस्म
जिसको जाना था वह चला गया
(१) संजाल पूर्ण कीजिए: (२)
उत्तर:
(२) पद्यांश में आए हुए निम्न शब्दों का चयन परिवर्तन कीजिए: (२)
(1) बाँह : ………..
उत्तर:
बाँह → बाहें
(2) सेतु : …………
उत्तर:
सेतु → सेतुएँ
(3) लीला : ………
उत्तर:
लीला → लीलाएँ
(4) घाटी : …….
उत्तर:
घाटी → घाटियाँ
(3) वृक्ष की उपयोगिता’ इस विषय पर अपने विचार ४० से ४५ शब्दों में लिखिए। (२)
उत्तर:
वृक्ष मानवीय जीवन के पुराने साथी हैं। प्राचीन काल में लोग वृक्षों से मिलने वाले फल-फूल से अपनी आपजीविका चलाते थे। वृक्षों की हरियाली से मनुष्य का जीवन प्रसन्न होता है। थक-हारकर सभी मानव और पशु-प्राणी वृक्षों की छाया में शांति पाते हैं। इसलिए वृक्षों को पुराना साथी कहा गया है।
कुछ वृक्षों से मनुष्य को औषधियाँ मिलती हैं। वृक्ष मनुष्य के लिए बहुत उपयोगी साबित होते हैं साथ ही वृक्ष हमारे प्रकृति के संतुलन को बनाये रखता है। पेड़ से हमें लकड़ी मिलती हैं जिससे घर के फर्नीचर में खिड़की-दरवाजे आदि बनाते हैं। वृक्ष हमें तेज धूप से बचाते हैं और छाया देते हैं। वृक्ष कार्बन डाइऑक्साइड ग्रहण करके मनुष्य को ऑक्सीजन देते हैं। इस प्रकार वृक्ष हमारे जीवन के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण और उपयोगी हैं। अतः वृक्षों को नहीं काटना चाहिए।
(आ) निम्नलिखित प्रश्नों में से किसी एक प्रश्न का उत्तर ८० से १०० शब्दों में लिखिए।: (६)
(1) कनुप्रिया की दृष्टि से जीवन की सार्थकता स्पष्ट कीजिए ।
उत्तर:
कनुप्रिया ने सहज जीवन व्यतीत किया है। उसने तन्मयता के क्षणों में डूबकर जीवन की सार्थकता पाई है। कनुप्रिया अर्थात् राधा के लिए जीवन में प्यार सर्वोपरि है। राधा युद्ध के वैरभाव को निरर्थक मानती है। कृष्ण के प्रति कनुप्रिया का प्यार निर्मल और निश्छल है। वह जीवन की समस्त घटनाओं को व्यक्तियों को केवल प्यार की कसौटी पर ही कसती है। वह तन्मयता के क्षणों में अपने सखा कृष्ण की सभी लीलाओं का अपमान करती है। राधा सिर्फ प्यार को सार्थक मानती हैं। अन्य सभी बातों को, युद्ध को नफरत को निरर्थक मानती हैं।
महाभारत के युद्ध के महानायक कृष्ण को सम्बोधित करते हुए वह कहती है कि मैं तो तुम्हारी वही बावरी सखी हूँ, तुम्हारी मित्र हूँ, मैंने तुमसे सदा स्नेही ही पाया है और मैं स्नेह की भाषा ही समझती हूँ। कनुप्रिया कृष्ण के कर्म, स्वधर्म, निर्णय तथा दायित्व जैसे शब्दों को सुनकर कुछ नहीं समझ पाती है। कनुप्रिया ने कृष्ण के जिन अधरों से पहली बार प्रणय के शब्द सुने थे उन अधरों की कल्पना राह में रूक कर कनुप्रिया करती है। उसे इन शब्दों में केवल अपना ही नाम राधन् …. राधन् …. राधन् ….. सुनाई देता है।
इस प्रकार राधा की दृष्टि से जीवन की सार्थकता प्रेम की पराकाष्ठा में है। उसके लिए इसे त्यागकर किसी अन्य का अनुसरण करना निरर्थक है।
(२) ‘कवि ने कनुप्रिया के माध्यम से आधुनिक मानव की व्यथा को शब्दबद्ध किया है, इस कथन को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
कनुप्रिया’ इस काव्य में राधा अपने प्रियतम कृष्ण से ‘महाभारत’ युद्ध के महानायक के रूप में अपने से दूर चले जाने से व्यथित है। इस बात को लेकर वह अनेक कल्पनाएँ करती है। कभी अपने प्रिय की उपलब्धि पर गर्व करके संतोष कर लेती है, तो कभी व्यथा व्यक्त करती है।
यह व्यथा सिर्फ कनुप्रिया राधा की ही नहीं है। यह उन परिवारों के माता-पिता की भी है, जिनके बेटे अपने परिवारों के साथ नौकरी, व्यवसाय के सिलसिले में अपनी गृहस्थी के प्रति अपना दायित्व निभाने के लिए अपने माता-पिता से दूर रहते हैं। उनसे बिछुड़ने की व्यवथा उन्हें भोगनी पड़ती है।
एक नरक उन्हें सालों-साल तक बेटे का दर्शन नहीं होना इस बात का दुख है, वहीं दूसरी तरफी उनको संतोष और गर्व भी होता है कि उनका बेटा वहाँ बड़े पद पर है, जो उनके साथ रहने पर वह पद उनका बेटा हासिल नहीं कर पाता। इसी प्रकार किसी एहसान फरामोश के प्रति एहसान करने वाले व्यक्ति के मन में उत्पन्न होने वाली भावनाओं में भी राधा के माध्यम से आधुनिक मानव की व्यथा व्यक्त होती हैं।
विभाग – ४ व्यावहारिक हिंदी, अपठित गदयांश एवं पारिभाषिक शब्दावली (अंक-२०)
कृति ४
(अ) निम्नलिखित का उत्तर लगभग १०० से १२० शब्दों में लिखिए: (६)
“जो तोको काँटा बुवै, ताहि बोई तू फूल” इस पंक्ति का भाव पल्लावन कीजिए।
उत्तर:
महान व्यक्ति वही होता है जो उपकार करने वाले व्यक्ति के लिए भी ईर्ष्या, वैर की भावना नहीं रखता। निन्दक को भी गले लगाना उपकारी पर उपकार करना मनुष्य की महानता के लक्षण हैं। अहित करने वाले का हित सोचना, अपने मार्ग में काँटे बिछाने वाले के लिए फूल बिछाना, क्षमा करना महान मानवीय गुण हैं। कोई हमारी सफलता, प्रगति या शुभ काम में बाधा या विघ्न खड़ा करे या शत्रुता का भाव रखे, वैसा व्यवहार करे हमें उसके प्रति नम्र रहना चाहिए, मधुर व्यवहार करना चाहिए।
हमारी नम्रता, सद्भाव और मधुरता हमारे जीवन में सुगन्ध भरेंगे। यह व्यवहार हमारे पुण्य को बढ़ाएगा, प्रचुर अर्थ प्रदान करेगा।
कुछ व्यक्ति हमेशा ईंट का जवाब पत्थर से देते हैं। ऐसे व्यक्ति बैठे-बिठाए ही आफत मोल लेते हैं और एक-दूसरे के प्रति दूरियाँ निर्माण होती हैं। यदि कहीं आग लगती है तो उसे बुझाने का प्रयास करना चाहिए न कि आग को फूँक देकर और ज्यादा भड़काया जाय। जो व्यक्ति दूसरों की राह में काँटे बोते हैं, उनका खुद का विवेक नष्ट हो जाता है। ईर्ष्या और द्वेष की अग्नि से खुद भी जलते हैं और दूसरों को भी जलाते हैं। प्रेम करना तो सबसे अच्छा है। परन्तु वैर करना किसी के साथ भी अच्छा नहीं है। क्योंकि किसी के साथ वैर करने मनुष्य की हमेशा हानि होती है और लाभ शून्य होता है। कटुता रखने से कटुता कभी खत्म नहीं होती।
वैर भाव रखने से वैर कम नहीं होता वह बढ़ता ही रहता है। यदि कोई आप पर क्रोध करता है तो आप उसके ऊपर शांति का जल डालिए, यदि कोई अहंकार से भरा हुआ आपके सामने आता है, तो आप नम्र भाव से उसे देखिए, उसके साथ सरलता का व्यवहार कीजिए। ऐसा करने से क्रोधी व्यक्ति का क्रोध और अभिमानी व्यक्ति का अभिमान दूर हो जाएगा जो हमारे लिए बुरा करता है, उसका भला करें। उसके मार्ग में काँटे दूर करके वहाँ फूल बिछा दें। भला करनेवाला, फूल बिछानेवाला सदैव अच्छा ही जीवन पाता है। काँटे बिछाने वाले, स्वयं ही उसमें उलझकर घायल हो जाते हैं। अत: हमें अपना व्यवहार सदैव विनम्र रखना चाहिए। दूसरों के लिए हमें सदैव मन में अच्छा ही भाव रखना चाहिए।
अथवा
निम्नलिखित परिच्छेद पढ़कर सूचना के अनुसार कृतियाँ पूर्ण कीजिए:
मैं इस बात का ध्यान रखता हूँ कि कार्यक्रम कोई भी हो, मंच की गरिमा बनी रहे। मंचीय आयोजन में मंच पर आने वाला पहला व्यक्ति संचालक ही होता है। एंकर (उद्घोषक) का व्यक्तित्व दर्शकों को पहली नजर में ही सामने आता है। अतएव उसका परिधान, वेशभूषा, केश सज्जा इत्यादि सहज व गरिमामयी होनी चाहिए। उद्घोषक या एंकर के रूप में जब वह मंच पर होता है तो उसका व्यक्तित्व और उसका आत्मविश्वास ही उसके शब्दों में उतरकर श्रोता तक पहुँचता है। सतर्कता, सहजता और उत्साहवर्धन उसके मुख्य गुण हैं।
मेरे कार्यक्रम का आरम्भ जिज्ञासाभरा होता है। बीच-बीच में प्रसंगानुसार कोई रोचक दृष्टांत, शेरओ-शायरी या कविताओं के अंश का प्रयोग करता हूँ। जैसे-एक कार्यक्रम में वक्ता महिलाओं की तुलना गुलाब से करते हुए कह रहे थे कि महिलाएँ बोलती भी ज्यादा हैं और हँसती भी ज्यादा हैं। बिल्कुल खिले गुलाबों की तरह वगैरह. ….। जब उनका वक्तव्य खत्म हुआ तो मैंने उन्हें धन्यवाद देते हुए कहा कि सर आपने कहा कि महिलाएँ हँसती बोलती बहुत ज्यादा हैं।
(१) वाक्य पूर्ण कीजिए: (२)
(१) मंचीय आयोजन में मंच पर आने वाला पहला व्यक्ति ………।
उत्तर:
मंचीय आयोजन के मंच पर आने वाला पहला व्यक्ति संचालक होता है।
(२) मेरे कार्यक्रम का आरम्भ ………..।
उत्तर:
मेरे कार्यक्रम का आरम्भ जिज्ञासाभरा होता है।
(३) मैं इस बात का ध्यान रखता हूँ कि कार्यक्रम कोई भी हो …… ।
उत्तर:
मैं इस बात का ध्यान रखता हूँ कि कार्यक्रम और भी रोचक हो, मंच की गरिमा बनी रहे।
(४) एंकर (उद्घोषक) का व्यक्तित्व दर्शकों की ………….।
उत्तर:
एंकर (उद्घोषक) का व्यक्तित्व दर्शक की पहली नजर में ही सामने आता है।
(२) निम्नलिखित शब्दों के लिए परिच्छेद में आए हुए प्रत्यययुक्त शब्द लिखिए: (२)
(१) व्यक्ति : ………
उत्तर:
व्यक्ति – व्यक्तित्व
(२) सहज : …….
उत्तर:
सहज – सहजता
(३) सतर्क : …………
उत्तर:
सर्तक – सतर्कता
(४) गरिमा : ……..
उत्तर:
गरिमा – गरिमामयी
(३) ‘व्यक्तित्व विकास में भाषा का महत्व’ इस विषय पर अपने विचार ४० से ५० शब्दों में लिखिए। (२)
उत्तर:
‘व्यक्तित्व विकास में भाषा का महत्व’ – व्यक्ति अपने मन के भाव भाषा के माध्यम से ही अभिव्यक्त करता है। भाष व्यक्ति के विकास का महत्वपूर्ण साधन है। मनुष्य की अभिव्यक्ति में ही उसके अंदर छिपी हुई प्रतिभा के दर्शन होते हैं। अपने विचारों को सफलतापूर्वक व्यक्त करना और अनेक भाषाएँ बोल लेना विकसित व्यक्तित्व के लक्षण हैं। व्यक्ति की अभिव्यक्ति जिन की अधिक स्पष्ट होगी उसके व्यक्तित्व का विकास भी उतना ही प्रभावशाली ढंग से बढ़ेगा। भाषा के बिना मनुष्य अधूरा है। मनुष्य को सभ्य और पूर्ण बनाने के लिए रिश्ता जरूरी है सभी प्रकार की भाषा का माध्यम भाषा ही है।
(आ) निम्नलिखित में से किसी एक का उत्तर ८० से ९०० शब्दों में लिखिए: (४)
(१) फीचर लेख की विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर:
फीचर किसी विशेष घटना, व्यक्ति, जीव-जन्तु, स्थान, प्रकृति-परिवेश से सम्बन्धित व्यक्तिगत अनुभूतियों पर आधारित आलेख होता है। फीचर समाचार-पत्र का प्राणतत्व होता है। फीचर समाचारों को नया आयाम देता है, उनका परीक्षण करता है, उस पर नया प्रकाश डालता है।
घटना की मनोरंजनात्मक अभिव्यक्ति एक कला ही है। फीचर किसी बाह्य की तरह बहुत लम्बा नीरस और गंभरी नहीं होना चाहिए। इस प्रकार के फीचर से पाठक नीरस हो जाते हैं और ऐसे फीचर में किसी को दिलचस्पी नहीं होती। फीचर किसी विषय का मनोरंजन शैली में विस्तृत विवेचन है। अच्छा फीचर नवीनतम जानकारी से परिपूर्ण होता है।
फीचर का मुख्य तत्व है किसी घटना की सत्यता तथा संरचना । फीचर लेखन की भाषा सहज, सम्प्रेषणीयता से परिपूर्ण होनी चाहिए। प्रसिद्ध व्यक्तियों के कथनों, उदाहरणों, लोकोक्तियों और मुहावरों का प्रयोग फीचर में चार चाँद लगा देता है। फीचर लेखन में शब्द चयन अत्यन्त महत्वपूर्ण है। नीरस फीचर कोई भी नहीं पढ़ता इसलिए फीचर लेखन में भावप्रधानता होनी चाहिए।
फीचर से सम्बन्धित तथ्यों का आधार देना जरूरी है। फीचर में विषय की नवीनता होना आवश्यक है, क्योंकि उसके बिना फीचर अपठनीय हो जाता है। विश्वसनीयता के लिए फीचर में तार्किकता आवश्यक है फीचर के विषय के अनुकूल फोटो अथवा चित्र कार्टून या व्यंग्यपूर्ण हास्य चित्र का उपयोग किया जाए तो फीचर अधिक प्रभावशाली बन जाता है। फीचर में किसी व्यक्ति अथवा घटना विशेष का उदाहरण दिया गया हो तो उसकी संक्षेप में जानकारी देना भी आवश्यक है।
फीचर लेख में राष्ट्रीय स्तर के तथा अन्य महत्वपूर्ण तथा समसामयिक विषयों का समावेश होना चाहिए। फीचर पाठक की मानसिक योग्यता और शैक्षिक पृष्ठभूमि के अनुसार होना चाहिए।
(२) ब्लॉग लेखन में बरती जाने वाली सावधानियों पर प्रकाश डालिए ।
उत्तर:
ब्लॉग लेख करते समय छोटी-छोटी बातों का ध्यान रखना आवश्यक है-
ब्लॉग लेखन में इस बात का ध्यान रखना पड़ता है कि उसमें मानक भाषा का ही प्रयोग हो । व्याकरणिक अशुद्धियाँ न हों।
ब्लॉग लेखन करते समय प्राप्त स्वतन्त्रता का उपयोग उचित प्रकार से होना चाहिए। कुछ भी लिखने की अनुमति नहीं होती। ब्लॉग लेखन करते समय पाठकों को पसंद आनेवाली भाषा का प्रयोग होना चाहिए। ब्लॉग लेखन में आक्रामक अर्थात् गाली-गलौज अथवा अश्लील शब्दों का प्रयोग नहीं होना चाहिए।
ब्लॉग लेखन करते समय किसी की निंदा करना, किसी पर गलत टिप्पणी करना, समाज में तनाव की स्थिति उत्पन्न करना आदि बातों से ब्लॉग लेखक को दूर रहना चाहिए।
ब्लॉग लेखन में बिना सबूत के किसी पर कोई आरोप करना एक गंभीर अपराध है। ऐसा करने से पाठक आपकी कोई भी बात गंभीरता से नहीं पढ़ते और ब्लॉग की आयु अल्प हो जाती है। ब्लॉग लेखन करते समय छोटी-छोटी सावधानियाँ बरती जाएँ तो पाठक ही हमारे ब्लॉग के प्रचारक बन जाते हैं। एक पाठक दूसरे से सिफारिश करता है, दूसरा तीसरे से और यह श्रृंखला बढ़ती चली जाती है।
अथवा
सही विकल्प चुनकर रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए :
(१) विपुल पठन, ………….. तथा भाषा का समुचित ज्ञान होना आवश्यक है।
(१) मनन
(2) लेखन
(३) चिंतन
(४) उद्दीपन
उत्तर:
विपुल पठन, चिंतन तथा भाषा का समुचित ज्ञान होना आवश्यक है।
(२) विषय का …… शीर्षक फीचर की आत्मा है-
(१) महत्वपूर्ण
(२) औचित्यपूर्ण
(३) अर्थपूर्ण
(४) ज्ञानपूर्ण
उत्तर:
विषय का औचित्यपूर्ण शीर्षक फीचर की आत्मा है।
(३) किसी भी कार्यक्रम में मंच …… की बहुत अहम भूमिका होती है।
(१) नायक
(२) लेखक
(३) अभिभावक
(४) संचालक
उत्तर:
किसी भी कार्यक्रम का मंच में संचालक की बहुत अहम भूमिका होती है।
(४) भारत में ……… के बाद ‘ब्लॉग लेखन’ आरम्भ हुआ।
(१) २००२
(२) २००३
(३) २००४
(४) २००५
उत्तर:
भारत में २००२ के बाद ‘ब्लॉग लेखन’ आरम्भ हुआ।
(इ) निम्नलिखित अपठित गद्यांश पढ़कर सूचना के अनुसार कृतियाँ पूर्ण कीजिए: (६)
रविशंकर जी भारत के जाने-माने सितार वादक व शास्त्रीय संगीतज्ञ हैं। उन्होंने बोटल्स व विशेष तौर पर जॉर्ज हैरीसन के सहयोग से भारतीय शास्त्रीय संगीत को, विदेशों तक पहुँचाने में अहम भूमिका निभाई थी।
उनका जन्म ०७ अप्रैल, १९२० को वाराणसी में हुआ। उनके बड़े भाई उदयशंकर एक प्रसिद्ध शास्त्रीय नर्तक थे। प्रारम्भ में रविशंकर जी उनके साथ विदेश यात्राओं पर जाते रहे व कई नृत्य-नाटिकाओं में अभिनय भी किया।
१९३८ में उन्होंने नृत्य को छोड़कर संगीत को अपना लिया व मेहर घराने के उस्ताद अलाउद्दीन खाँ से सितार वादन का प्रशिक्षण लेने लगे। १९४४ में अपना प्रशिक्षण समाप्त करने के बाद, उन्होंने आई.पी.टी.ए. में दाखिला लिया व बैले के लिए सुमधुर धुनें बनाने लगे। वे ऑल इण्डिया रेडियो में वाद्यवृंद प्रमुख भी रहे।
१९५४ में उन्होंने सर्वप्रथम सोवियत यूनियन में पहला विदेशी प्रदर्शन दिया। फिर एडिनबर्ग फेस्टिवल के अतिरिक्त रॉयल फे. स्टिवल हॉल में भी प्रदर्शन किया। १९६० के दर्शक में ब्रीटल्स के साथ काम करके उन्होंने भारतीय शास्त्रीय संगीत की धूम विदेशों तक पहुँचा दी।
वे १९८६ से १९९२ तक राज्य सभा के मनोनीत सदस्य रहे । १९९९ में उन्हें भारतरत्न से सम्मानित किया गया। उन्हें पद्मविभूषण, मैग्सेसे, ग्रेमी, क्रिस्टल तथा फूकूओका आदि अनेक पुरस्कार भी प्राप्त हुए।
उनकी पुत्री अनुष्का का जन्म १९८२ में, लंदन में हुआ । (ई) अनुष्का का पालन-पोषण दिल्ली व न्यूयार्क में हुआ। अनुष्का ने पिता से सितार वादन सीखा व अल्प आयु में ही अच्छा कैरियर बना लिया। वे बहुप्रतिभाशाली कलाकर हैं। उन्होंने पिता को समर्पित करते हुए एक पुस्तक लिखी ‘बापी, द लव ऑफ माई लाईफ ।’ इसके अतिरिक्त उन्होंने एक फिल्म में भरतनाट्यम नर्तकी का रोल भी अदा किया।
पंडित रविशंकर जी ने अनेक नए रागों की रचना की। सन् २000 में उन्हें तीसरी बार ग्रेमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
पंडित जी ने सही मायने में पूर्व तथा पश्चिमी संगीत के मध्य एक से हेतु कायम किया है। दिसम्बर २०१२ में उनका स्वर्गवास हुआ।
(१) तालिका पूर्ण कीजिए: (२)
(१) रविशंकर जी को प्राप्त पुरस्कार (२)
उत्तर:
रविशंकर जी को प्राप्त पुरस्कार
(१) भारतरत्न
(२) पद्मविभूषण
(३) मैग्सेस
(४) ग्रेमी
(२) निम्नलिखित शब्दों का लिंग परिवर्तन कीजिए: (२)
(१) नर्तक : …….
उत्तर:
नर्तक : नर्तकी
(२) माता : …….
उत्तर:
माता : पिता
(३) पंडिताईन : ……..
उत्तर:
पंडिताइन : पंडितजी
(५) पुत्र : …..
उत्तर:
पुत्र : पुत्री
(३) ‘संगीत का जीवन में महत्व’ इस विषय पर अपने विचार ४० से ५० शब्दों में लिखिए। (२)
उत्तर:
जीवन में खुश और व्यस्त रहने के लिए संगीत सबसे अच्छा तरीका है। संगीत मानव जीवन को हमेशा खुश रखने में सहायता करने वाला एक साधन है। संगीत सभी के जीवन में महान भूमिका निभाता है। हमारे जीवन को संगीत शान्तिपूर्ण बनाता है, हमारे शरीर को आराम देता है।
संगीत से हमारे कार्य करने की क्षमता बढ़ जाती है। संगीत सुनने से मन की उदासी, निराशा उत्साह और आशा में परिवर्तित होती है। संगीत आज के जीवन में मानवीय जीवन का अभिन्न अंग हिस्सा बन गया है। वर्तमान स्थति में संगीत एक ऐसा सशक्त माध्यम है जो व्यक्ति को शारीरिक, मानसिक रोगों से मुक्ति प्रदान करता है। संगीत से जीवन ऊर्जावान और रोचक हो जाता है। संगीत से उमंग और उत्साह का निर्माण होता है।
(ई) निम्नलिखित में से किन्हीं चार पारिभाषिक शब्दों के लिए हिन्दी शब्द लिखिए। (४)
(१) Invalid
(२) Interpreter
(३) Commission
(४) Paid up
(५) Fraction
(६) Meterology
(७) Output
(८) Auxilliary Memory
उत्तर:
(१) Invalid → अवैध
(२) Interpreter → दुभाषिया
(३) Commission → आढ़त
(४) Paid up → चुकता
(५) Friction → घर्षण
(६) Meterology → मौसम विज्ञान
(७) Output → निकास
(८) Auxilliary Memmory → सहायक स्मृति
विभाग ५ व्याकरण (अंक-१०)
कृति ५
(अ) निम्नलिखित वाक्यों का कोष्ठक में दी गई सूचनाओं के अनुसार काल परिवर्तन कीजिए। (४ में से २) (२)
(१) मुझे क्षण भर के लिए चौंका दिया था। (सामान्य भूतकाल)
उत्तर:
मुझे क्षण भर के लिए चौंका दिया।
(२) मैं इसके परिणाम की प्रतीक्षा करती हूँ। (सामान्य भविष्यत्काल)
उत्तर:
मैं इसके परिणाम की प्रतीक्षा करती रहूँगी।
(३) आज ओजोन छतरी का अस्तित्व ही संकट में पड़ गया है। (पूर्ण वर्तमानकाल)
उत्तर:
आज ओजोन छतरी का अस्तित्व ही संकट में पड़ा है।
(४) एक दुख की बात बताने जा रहा था। (अपूर्ण वर्तमानकाल)
उत्तर:
एक दुख की बात बताने जा रहा हूँ।
(आ) निम्नलिखित पंक्तियों में उद्धृत अलंकारों के नाम पहचानकर लिखिए। (कोई दो) (२)
(१) चरण सरोज पखारन लागा।
उत्तर:
रुपक अलंकार।
(२) जान पड़ता है नेत्र देख बड़े-बड़े ।
हीरकों में गोल नीलम हैं जड़े ॥
उत्तर:
उत्प्रेक्षा अलंकार ।
(३) हनुमंत की पूँछ में लग न पाई आग।
लंका सगरी जल गई, गए निशाचर भाग ॥
उत्तर:
अतिशयोक्ति अलंकार ।
(४) करत-करत अभ्यास के, जड़मति होत सुजान।
रसरी आवत जात है, सिल पर पड़त निसान ॥
उत्तर:
दृष्टांत अलंकार।
(इ) निम्नलिखित पंक्तियों में उद्धृत रस पहचानकर उनके नाम लिखिए। (कोई दो) (२)
(१) माला फेरत जुग भया, गया न मन का फेर ।
कर का मनका डारि कँ, मन का मनका फेर ॥
उत्तर:
शान्त रस ।
(२) कहा- कैकयी ने सक्रोध
दूर हट! दूर हट! निर्बोध !
द्विजिव्हे रस में विष मत घोल ।
उत्तर:
रौद्र रस।
(३) तू दयालु दीन हाँ, तू दानि हौं भिखारी ।
हाँ प्रसिद्ध पातकी, तू पाप पुंजहारी ॥
उत्तर:
भक्ति रस ।
(४) सिर पर बैठो कागा, आँखि दोऊ खात
खींचहि जीभहिं सियार अतिहि आनंद उर धारत ।
गिद्ध जाँध के माँस खोदि खोदि खात, उचारत हैं।
उत्तर:
वीभत्स रस ।
(ई) निम्नलिखित मुहावरों के अर्थ लिखकर उचित वाक्यों में प्रयोग कीजिए। (कोई दो) (२)
(१) तूती बोलना
उत्तर:
तूती बोलना – अधिक प्रभाव होना ।
कक्षा में प्रथम स्थान पाने से कक्षा में श्रेया की तूती बोलती है।
(२) ढाँचा डगमगा उठना
उत्तर:
ढाँचा डगमगा उठना- आधार हिल उठना।
कभी-कभी गलत निर्णय के कारण किसी परिवार का ढाँचा डगमगा उठता है।
(३) जहर का घूँट पीना
उत्तर:
जहर का घूँट पीना – अपमान को चुपचाप सह लेना ।
जीवन में जब कठिन समय से हमें गुजरना पड़ता है तब अनेक बार जहर का घूँट पीना पड़ता है।
(४) बात का धनी
उत्तर:
बात का धनी – वचन का पक्का ।
कुछ लोग गुस्सैल जरूर होते हैं, पर बात के धनी होते हैं।
(3) निम्नलिखित वाक्यों को शुद्ध करके वाक्य फिर से लिखिए। (कोई दो) (२)
(१) इस खुशी में फूल झूम रहे थे।
उत्तर:
इस खुशी में फूल झूम रहे थे।
(२) निराला जी अपने शरीर, जीवन और साहीत्य सभी में असाधारण है।
उत्तर:
निराला जी अपने शरीर, जीवन और साहित्य सभी में असाधारण हैं।
(३) नये मूल्यों का निर्माण करना है।
उत्तर:
नए मूल्यों का निर्माण करना है।
(४) मैंने फिर चूप रहना ही उचित समझा।
उत्तर:
मैंने फिर चुप रहना ही उचित समझा।