Maharashtra Board SSC Class 10 Hindi Question Paper DEC 2020 with Answers Solutions Pdf Download.
SSC Hindi Question Paper DEC 2020 with Answers Pdf Download Maharashtra Board
Time: 3 Hours
Total Marks: 80
सूचनाएँ:
1. सूचनाओं के अनुसार गद्य, पद्य, पूरक पठन तथा भाषा अध्ययन (व्याकरण) की आकलन कृतियों में आवश्यकता के अनुसार आकृतियों में ही उत्तर लिखना अपेक्षित है।
2. सभी आकृतियों के लिए पेन का ही प्रयोग करें।
3. रचना विभाग में पूछे गए प्रश्नों के उत्तर लिखने के लिए आकृतियों की आवश्यकता नहीं है।
4. शुद्ध, स्पष्ट एवं सुवाच्य लेखन अपेक्षित है।
विभाग 1 – गद्य
प्रश्न 1.
(अ) निम्नलिखित पठित गद्यांश पढ़कर दी गई सूचनाओं के अनुसार कृतियाँ कीजिए:
दोपहर बाद जब करामत अली ड्यूटी से लौटा और नहा धोकर कुछ नाश्ते के लिए बैठा तो रमजानी उससे बोली- “मेरी मानो तो इसे बेच दो।” “फिर बेचने की बात करती हो……..? कौन खरीदेगा इस बुढ़िया को।” “रहमान कुछ कह तो रहा था, उसे कुछ लोग खरीद लेंगे। उसने किसी से कहा भी है। शाम को वह तुमसे मिलने भी आएगा।” करामत अली सुनकर खामोश रह गया । उसे लग रहा था, सब कुछ उसकी इच्छा के विरुद्ध जा रहा है, शायद| जिस पर उसका कोई वश नहीं था। करामत अली यह अनुभव करते हुए कि लक्ष्मी की चिता अब किसी को नहीं है, खामोश रहा। उठा और घर में जो| सूखा चारा पड़ा था, उसके सामने डाल दिया। लक्ष्मी ने चारे को सूंघा और फिर उसकी तरफ निराशापूर्ण आँखों से देखने लगी। जैसे कहना चाहती हो, मालिक यह क्या? आज क्या मेरे फाँकने को यह सूखा चारा ही है। दर्रा खली कुछ नहीं। करामत अली उसके पास से उठकर मुँह-हाथ धोने के लिए गली के नुक्कड़ पर नल की ओर चला गया। |
(1) संजाल पूर्ण कीजिए: [2]
(2) प्रतिक्रियाएँ लिखिए:
i. लोगों द्वारा लक्ष्मी को खरीदने की बात सुनने पर करामत अली की – ……………
ii. करामत अली द्वारा लक्ष्मी को सूखा चारा देने पर लक्ष्मी की – ……………
(3) निम्नलिखित शब्द के दो अलग-अलग अर्थ लिखकर उनका अर्थपूर्ण वाक्य में प्रयोग कीजिए: [2]
शब्द | अर्थ | वाक्य |
(i) चारा | ……. | ……. |
(ii) चारा | ……. | ……. |
(4) ‘जानवर भी संवेदनशील होते हैं’ विषय पर 25 से 30 शब्दों में अपने विचार लिखिए। [2]
(आ) निम्नलिखित पठित गद्यांश पढ़कर दी गई सूचनाओं के अनुसार कृतियाँ कीजिए:
आश्रम किसी एक धर्म से चिपका नहीं होगा। सभी धर्म आश्रम को मान्य होंगे, अतः सामान्य सदाचार, भक्ति तथा सेवा का ही वातावरण रहेगा। आश्रम में स्वावलंबन हो सके उतना ही रखना चाहिए। सादगी का आग्रह होना चाहिए। आरम्भ में पढ़ाई या उद्योग की व्यवस्था भले न हो सके लेकिन आगे चलकर उपयोगी उद्योग सिखाए जाएँ। पढ़ाई भी आसान हो। आश्रम शिक्षासंस्था नहीं होगी लेकिन कलह और कुढ़न से मुक्त स्वतंत्र वातावरण जहाँ हो ऐसा मानवतापूर्ण आश्रयस्थान होगा, जहाँ परेशान महिलाएं बेखटके अपने खर्च से रह सकें और अपने जीवन का सदुपयोग पवित्र सेवा में कर सकें। ऐसा आसान आदर्श रखा हो और व्यवस्था पर समिति का झंझट न हो तो बहन सुंदर तरीके से चला सके ऐसा एक बड़ा काम होगा। उनके ऊपर ऐसा बोझ नहीं आएगा जिससे उन्हें परेशानी हो।
संस्था चलाने का भार तो आने वाली बहनें ही उठा सकेंगी क्योंकि उनमें कई तो कुशल होंगी बहन उनको संगीत की भक्ति की तथा प्रेमयुक्त सलाह की खुराक दें। |
(1) कारण लिखिए: [2]
i. आश्रम में भक्ति तथा सेवा का वातावरण रहेगा ……………
ii. संस्था चलाने का भार आने वाली बहनें उठा सकेंगी ……………
(2) उत्तर लिखिए:
परेशान महिलाओं को आश्रम से मिलने वाली सुविधाएँ [2]
i. ……………
ii. ……………
(3) निम्नलिखित शब्दों का तालिका में दी गई सूचना के अनुसार वर्गीकरण कीजिए: [2]
सादगी, पढ़ाई परेशानी, उपयोगी
तालिका
कृदंत शब्द | तद्धित शब्द |
…………… | …………… |
…………… | |
…………… |
(4) वर्तमान समाज में आश्रमों की बढ़ती हुई संख्या के बारे में 25 से 30 शब्दों में अपने विचार लिखिए। [2]
प्र. 1. (इ) निम्नलिखित अपठित गद्यांश पढ़कर दी गई सूचनाओं के अनुसार कृतियाँ कीजिए: [4]
सन् 1897 में भारत में महामारी का प्रकोप हुआ स्वामी विवेकानंद ने देश सेवा जती संन्यासियों की एक छोटी-सी मंडली बनाई। यह मंडली तन-मन से दीन-दुखियों की सेवा करने लगी। ढाका, कोलकाता, चेन्नई आदि में सेवाश्रम खोले गए। वेदांत के प्रचार के लिए जगह-जगह विद्यालय स्थापित किए गए। कई अनाथालय भी खोल दिए गए।
ये सभी कार्य स्वामी जी के निरीक्षण में हो रहे थे। उनका स्वास्थ्य काफी बिगड़ गया था, फिर भी वह स्वयं घर-घर घूमकर पीड़ितों को आश्वासन तथा आवश्यक सहायता देते रहते थे। जिन मरीजों को देखर डॉक्टर भी भाग जाते थे, उनकी सहायता करने में स्वामी जी और उनके अनुयायी कभी पीछे नहीं हटे। |
(1) तालिका पूर्ण कीजिए:
गद्यांश में वर्णित स्वामी विवेकानंद के कार्य ………………………… ………………………… ………………………… |
(2) ‘सेवाभाव का महत्त्व’ विषय पर 25 से 30 शब्दों में अपने विचार लिखिए। [2]
उत्तर:
(अ) (1)
(2) i. करामत अली खामोश रह गया। [1]
ii. लक्ष्मी ने चारे को सूँघा और फिर उसकी तरफ निराशापूर्ण आँखों से देखने लगी।
(3) i. चारा – उपाय
वाक्य : जमीन को बेचने के अतिरिक्त कंगाल रामू के पास अन्य कोई चारा न था।
ii. चारा- पशु का भोजन
वाक्य: राजू ने बैलों के सामने चारा रख दिया।
(4) ईश्वर ने इस संसार की रचना की है। उन्होंने सभी जीवों को संवेदनशील बनाया है। एक छोटी-सी चींटी से लेकर विशालकाय हाथी सभी के भीतर संवेदनाएँ भरी हुई हैं। मनुष्य की तरह ही पशु भी दुख में दुखी और सुख में खुश होते हैं। पशुओं के साथ इंसान जैसा व्यवहार करता है, पशु भी उनके साथ वैसा ही व्यवहार करते हैं। मनुष्य की भाँति पशु भी एक अच्छे जीवन की कामना करते हैं। अतः मनुष्य को चाहिए कि वह पशुओं के प्रति सहानुभूति रखे और उनका सही ढंग से पालन-पोषण करे। इसमें पशु व मनुष्य दोनों का लाभ निहित है।
(आ) (1) i. आश्रम किसी एक धर्म से चिपका नहीं होगा। सभी धर्म आश्रम को मान्य होंगे।
ii. उनमें कई कुशल होंगी।
(2) i. बेखटके अपने खर्च से रहना।
ii. अपने जीवन का सदुपयोग पवित्र सेवा में करना।
(3)
कृदंत शब्द | तद्धित शब्द |
पढ़ाई | सादगी |
परेशानी | |
उपयोगी |
(4) आश्रम वह स्थान होता है, जहाँ पर लोग शांति से अपना जीवन व्यतीत करने के लिए आते हैं। वे यहाँ पर आकर अपने जीवन का उपयोग समाजसेवा के लिए भी करते हैं। आज हमारे समाज में लोग अपने बूढ़े माँ-बाप को अपने साथ नहीं रखना चाहते हैं। यह कटु परंतु सत्य है। ऐसे में उनके गुजर-बसर का एक मात्र ठिकाना वृद्धाश्रम ही बचता है। इसी कारण दिन-प्रतिदिन वृद्धाश्रमों की संख्या बढ़ती जा रही है। महिलाओं पर होने वाले अत्याचारों के चलते वे भी स्वतंत्रता व समानता का जीवन बिताने के लिए महिलाश्रमों का रुख करने पर मजबूर हो जाती हैं। अनाथ बच्चों को सही दिशा दिखाने व उनका पालन- पोषण करने हेतु बाल आश्रमों का निर्माण किया गया है। इस प्रकार समाज में अनेक समस्याओं के बढ़ने के कारण ही आश्रमों की संख्या बढ़ती चली जा रही है।
(इ)
गद्यांश में वर्णित स्वामी विवेकानंद के कार्य • देशसेवा बती संन्यासियों की एक छोटी-सी मंडली बनाई गई। • ढाका, कोलकाता, चेन्नई आदि में सेवाश्रम खोले गए। • वेदांत के प्रचार के लिए जगह-जगह विद्यालय स्थापित किए गए। • कई अनाथालय भी खोल दिए गए। |
(2) ईश्वर ने मनुष्य की रचना की है। मनुष्य में सोचने-समझने की क्षमता है। वह दूसरों के हित अनहित को ध्यान में रखकर उनकी मदद कर सकता है। ‘परहित सरिस धर्म नहीं भाई’ अर्थात इस पूरे संसार में दूसरों की सेवा करने से बड़ा अन्य कोई धर्म नहीं है जो व्यक्ति अपना जीवन दूसरों की सेवा में समर्पित कर देता है, वह इतिहास में अमर हो जाता है। मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है। जिस व्यक्ति के अंदर सेवा भाव होता है, समाज उसे अपने सिर माथे पर बिठाता है। समाज का विकास भी ऐसे ही परोपकारी प्रवृत्ति के लोगों के कारण ही होता है। अंतः हमारे समाज में सेवाभाव का बहुत महत्त्व होता है।
विभाग 2 – पद्म
प्रश्न 2.
(अ) निम्नलिखित पठित पद्यांश पढ़कर दी गई सूचनाओं के अनुसार कृतियाँ कीजिए:
हरि बिन कूण गती मेरी।। तुम मेरे प्रतिपाल कहिये मैं रावरी चेरी।।आदि – अंत निज नाँव तेरो हीमायें फेरी। बेर-बेर पुकार कहूँ प्रभु आरति है तेरी।।संसार बिकार सागर बीच में घेरी। नाव फाटी प्रभु पाल बाँधो बूड़त है बेरी।।विरहणि पिवकी बाट जौवै राखल्यो नेरी। दासी मीरा राम रटत है मैं सरण हूँ तेरी।। |
(1) निम्नलिखित विधान सही हैं अथवा गलत है, लिखिए: [2]
i. मीराबाई के प्रभु उसके पालनहार हैं। – __________
ii. मीराबाई अपने आप को प्रभु को दासी नहीं कहती। – __________
iii. संसार रूपी सागर विकारों से भरा है। – __________
iv. संत मीराबाई अपने प्रभु की राह देख रही है। – __________
(2) पद्यांश से ढूँढ़कर लिखिए: [2]
विलोम शब्द जोड़ी | समानार्थी शब्द जोड़ी |
…… × …… | ……..=………. |
(3) उपर्युक्त पद्यांश की प्रथम चार पंक्तियों का सरल अर्थ 25 से 30 शब्दों में लिखिए। [2]
(आ) निम्नलिखित पठित पद्यांश पढ़कर दी गई सूचनाओं के अनुसार कृतियाँ कीजिए: [6]
चाहे सभी सुमन बिक जाएँ चाहे ये उपवन बिक जाएँ चाहे सौ फागुन बिक जाएँ पर मैं गंध नहीं बेचूँगा अपनी गंध नहीं बेचूँगा।।जिस डाली ने गोद खिलाया जिस कोंपल ने दी अरुणाई लछमन जैसी चौकी देकर जिन काँटों ने जान बचाई इनको पहिला हक आता है चाहे मुझको नोचें तोड़ें चाहे जिस मालिन से मेरी पँखुरियों के रिश्ते जोड़ें ओ मुझ पर मँडराने वालो मेरा मोल लगाने वालों जो मेरा संस्कार बन गई वो सौगंध नहीं बेचूँगा। अपनी गंध नहीं बेचूँगा।। |
(1) एक / दो शब्दों में उत्तर लिखिए:
i. अपनी गंध न बेचने वाला –
ii. फूल को अरुणाई देने वाली –
iii. फूल को गोद में खिलाने वाली
iv. चौकी देकर फूल की जान बचाने वाले
(2) i. निम्नलिखित शब्दों के लिंग पहचानकर लिखिए:
शब्द | लिंग |
सौंध | …………… |
फागुन | …………… |
ii. निम्नलिखित शब्दों के वचन बदलकर लिखिए:
पंखुरियाँ | …………… |
…………… | रिश्ता |
(3) उपर्युक्त पद्यांश की क्रमश: किन्हीं चार पंक्तियों का सरल अर्थ 25 से 30 शब्दों में लिखिए। [2]
उत्तर:
(1) i. सही
ii. गलत
iii. सही
iv. सही
(2) विलोम शब्द जोड़ी समानार्थी शब्द जोड़ी
विलोम शब्द जोड़ी | समानार्थी शब्द जोड़ी |
आदि × अंत | चेरी = दासी |
(3) मीराबाई कहती हैं कि हे प्रभु! तुम्हारे बिना मेरा उद्धार नहीं हो सकता है। तुम ही मेरे पालनहार और रक्षक हो। मैं तुम्हारी दासी हूँ। मेरे जीवन का प्रथम व अंतिम उद्देश्य आपको प्राप्त करना है। इसके लिए मैं हर क्षण आपका नाम जपती रहती हूँ। मैं बार-बार आपका नाम पुकार रहीं है, क्योंकि मुझे आपके दर्शन की तीव्र इच्छा है।
(आ) (1) i. फूल
ii. कोंपल
iii. डाली
iv. काँटे
(2) i.
शब्द | लिंग |
सौंध | स्त्रीलिंग |
फागुन | पुल्लिंग |
ii.
पंखुरियाँ | पंखुरी |
रिश्ते | रिश्ता |
(3) फूल कहता है कि जिस डाली ने उसे अपनी गोद में खिलाया; जिन कोंपलों ने उसे सुंदरता प्रदान की; लक्ष्मण की भाँति जिन काँटों ने उसकी दिन-रात रक्षा की, सबसे पहला हक उनका उस पर है। वे चाहे उसे तोड़ें या फिर नोंचकर फेंक दें। ये सभी फूल को चाहे जिस मालिन के हाथ सौंप दें, उसे कोई आपत्ति नहीं है।
विभाग 3 – पूरक पठन
प्रश्न 3.
(अ) निम्नलिखित पठित गद्यांश पढ़कर दी गई सूचनाओं के अनुसार कृतियाँ कीजिए: [4]
सिरचन जाति का कारीगर है। मैंने घंटों बैठकर उसके काम करने के ढंग को देखा है। एक-एक मोथी और पटेर को हाथ में लेकर बड़े जतन से उसकी कुच्ची बनाता। फिर कुच्चियों को रंगने से लेकर सुतली सुलझाने में पूरा दिन समाप्त। …. काम करते समय उसकी तन्मयता में जरा भी बाधा पड़ी कि गेहुँअन साँप की तरह फुफकार उठता- “फिर किसी दूसरे से करवा लीजिए काम सिरचन मुँहजोर है, कामचोर नहीं।”
बिना मजदूरी के पेट भर भात पर काम करने वाला कारीगर । दूध में कोई मिठाई न मिले तो कोई बात नहीं किंतु बात में जरा भी झाला वह नहीं बरदाश्त कर सकता।
सिरचन को लोग चटोर भी समझते हैं। तली वधारी हुई तरकारी, दही की कड़ी, मलाईवाला दूध, इन सबका प्रबंध पहले कर लो, तब सिरचन को बुलाओ।
(1) उत्तर लिखिए:
(2) ‘कार्य में तन्मयता लाती है सफलता’ विषय पर 25 से 30 शब्दों में अपने विचार लिखिए।
(आ) निम्नलिखित पठित पद्यांश पढ़कर दी गई सूचनाओं के अनुसार कृतियाँ कीजिए:
यह वह मिट्टी, जिस मिट्टी में खेले थे यहाँ ध्रुव से बच्चे। यह मिट्टी, हुए प्रहलाद जहाँ, जो अपनी लगन के थे सच्चे। शेरों के जबड़े खुलवाकर, थे जहाँ भरत दतुली गिनते, जयमल – पत्ता अपने आगे, थे नहीं किसी को कुछ गिनते! इस कारण हम तुमसे बढ़कर, हम सबके आगे चुप रहिए। अजी चुप रहिए, हाँ चुप रहिए। हम उस धरती के लड़के हैं…. बातों का जनाब, शऊर नहीं, शेखी न बधारें, हाँ चुप रहिए। हम उस धरती की लड़की है, जिस धरती की बातें क्या कहिए। |
(1) उपर्युक्त पद्यांश से वीरत्व दर्शाने वाली दो पंक्तियाँ ढूंढ़कर लिखिए: [2]
…………………………
…………………………
(2) ‘शेखी बघारना बुरी आदत है’ विषय पर 25 से 30 शब्दों में अपने विचार लिखिए।
उत्तर:
(अ) (1)
(2) किसी भी कार्य को यदि पूरी मेहनत और तन्मयता से किया जाए, तो सफलता अवश्य मिलती है। तन्मयता के कारण उस कार्य में आने वाली बाधाओं से भी इंसान निराश नहीं होता है। वह किसी-न- किसी प्रकार से समस्याओं का समाधान करते हुए अपनी मंजिल की ओर बढ़ता रहता है। तन्मयता के कारण कार्य के अतिरिक्त व्यक्ति को किसी अन्य चीज की भी सुध नहीं रहती है। व्यक्ति सफलता प्राप्त करने तक पूरी तरह से अपने कार्य में जुटा रहता है। इसी कारण ऐसा कहते हैं कि तन्मयता सफलता लाती है।
(आ) (1) शेरों के जबड़े खुलवाकर, थे जहाँ भरत दतुली गिनते,
जयमल पत्ता अपने आगे, ये नहीं किसी को कुछ गिनते।
(2) शेखी बघारने का शाब्दिक अर्थ अपने बारे में झूठी प्रशंसा करना होता है झूठ चाहे अपने बारे में हो या किसी और के बारे में, झूठ तो झूठ ही होता है। झूठ बोलना सबसे बड़ा पाप होता है। झूठ बोलने से न सिर्फ दूसरों का बल्कि अपना भी नुकसान होता है। एक बार शेखी बघार कर व्यक्ति दूसरों के सामने स्वयं को श्रेष्ठ साबित कर सकता है, लेकिन सच्चाई सामने आते ही उसकी इज्जत उतर जाती है। अतः शेखी बघारना बहुत बुरी आदत है और जीवन में ऐसा करने से सदा बचना चाहिए।
विभाग 4 – भाषा अध्ययन (व्याकरण)
प्रश्न 4.
सूचनाओं के अनुसार कृतियाँ कीजिए: [14]
(1) निम्नलिखित वाक्य में से अधोरेखांकित शब्द का शब्दभेद पहचानकर लिखिए: [1]
उन्होंने टूटी अलमारी खोली।
(2) निम्नलिखित अव्ययों में से किसी एक अव्यय का अर्थपूर्ण वाक्य में प्रयोग कीजिए: [1]
i. प्रायः
ii. अरे!
(3) कृति पूर्ण कीजिए: [1]
संधि शब्द | संधि-विच्छेद | संधि भेद |
निस्संदेह | + | ……. |
अथवा | ||
भानु + उदय | ……. |
(4) निम्नलिखित वाक्यों में से किसी एक वाक्य की सहायक क्रिया पहचानकर उसका मूल रूप लिखिए: [1]
i. मैं गोवा को पूरी तरह नहीं समझ पाया।
ii. काकी घटनास्थल पर आ पहुँची।
सहायक क्रिया | मूल क्रिया |
……. | ……. |
……. | ……. |
(5) निम्नलिखित में से किसी एक क्रिया का प्रथम तथा द्वितीय प्रेरणार्थक रूप लिखिए:
क्रिया | प्रथम प्रेरणार्थक रूप | द्वितीय प्रेरणार्थक रूप |
फैलना | ……………. | ……………. |
भूलना | ……………. | ……………. |
(6) निम्नलिखित मुहावरों में से किसी एक मुहावरे का अर्थ लिखकर उचित वाक्य में प्रयोग कीजिए: [1]
मुहावरा
i. ठेस लगना –
ii. कलेजे में हूक उठना –
अर्थ | वाक्य |
……………. | ……………. |
……………. | ……………. |
अधोरेखांकित वाक्यांश के लिए कोष्ठक में दिए मुहावरों में से उचित मुहावरे का चयन करके वाक्य
फिर से लिखिए:
(बोलबाला होना, प्रशंसा करना)
आजकल मोबाइल का प्रभाव है।
(7) निम्नलिखित वाक्यों में से किसी एक वाक्य में प्रयुक्त कारक पहचानकर उसका भेद लिखिए: [1]
i. हमारे शहर में एक कवि है।
ii. उन्हें पुस्तक ले आने के लिए कहा।
कारक चिह्न | कारक भेद |
……………. | ……………. |
(8) निम्नलिखित वाक्य में यथास्थान उचित विराम चिह्नों का प्रयोग करके वाक्य फिर से लिखिए: [1]
मैंने कहराते हुए पूछा, मैं कहाँ हूँ
(9) निम्नलिखित वाक्यों में से किन्हीं दो वाक्यों का सूचना के अनुसार काल परिवर्तन कीजिए: [2]
i. हमारे शहर में तो दो रुपये में मिलता है। (अपूर्ण वर्तमानकाल)
ii. मुझे जीवन को सहज और खुले ढंग से जीना है। (पूर्ण भूतकाल)
iii. मानू को ससुराल पहुँचाने मैं ही जाता हूँ। (सामान्य भविष्यकाल)
(10) i. निम्नलिखित वाक्य का रचना के आधार पर भेद पहचानकर लिखिए:
हमारी सामाजिक विचारधारा में एक बड़ा भारी दोष है। [1]
ii. निम्नलिखित वाक्यों में से किसी एक वाक्य का अर्थ के आधार पर दी गई सूचनानुसार परिवर्तन कीजिए: [1]
1. कितनी निर्दयी है मैं (विस्मयार्थक वाक्य)
2. सैकड़ों मनुष्यों ने भोजन किया। (प्रश्नार्थक वाक्य)
(11) निम्नलिखित वाक्यों में से किन्हीं दो वाक्यों की शुद्ध करके वाक्य फिर से लिखिए: [2]
i. रंगीन फूल की माला बहोत सुंदर लग रही थी।
ii. लड़के के तरफ मुखातिब होकर रामस्वरूप ने कोई कहना चाहा।
iii. कन्हैयालाल मिश्र जी बिड़ला के पुस्तक पड़ने लगे।
उत्तर:
(1) टूटी – विशेषण
(2) i. प्राय: अर्जुन प्रात:काल में ही अभ्यास करता है।
अथवा
ii. अरे! तुम यह क्यों कर रहे हो?
(3)
संधि शब्द | संधि-विच्छेद | संधि भेद |
निस्संदेह | निः + संदेह | विसर्ग संधि |
अथवा | ||
भानूदय | भानु + उदय | स्वर संधि |
(4)
सहायक क्रिया | मूल क्रिया |
i. पाया | पाना |
अथवा | |
ii. पहुँची | पहुँचना |
(5)
क्रिया | प्रथम प्रेरणार्थक रूप | द्वितीय प्रेरणार्थक रूप |
फैलना | फैलाना | फैलवाना |
अथवा | ||
भूलना | भुलाना | भुलवाना |
(6)
i. ठेस लगना – दुखी होना।
ii. वाक्य: जब शिवम ने मदद करने से मना कर दिया तो राजू को ठेस लगी।
अथवा
ii लेजे में हूक उठना – मन में वेदना उत्पन्न होना।
वाक्य: फुटपाथ पर बेसहारा लोगों की बुरी हालत देखकर मेरे कलेजे में हूक उठने लगी।
अथवा
आजकल मोबाइल का बोलबाला है।
(7) i. में – अधिकरण कारक
ii. के लिए – संप्रदान कारक
मैंने कहराते हुए पूछा, “मैं कहाँ हूँ ?”
(9) i मारे शहर में तो दो रुपये में मिल रहा है।
ii. मुझे जीवन को सहज और खुले ढंग से जीना था।
iii. मानू को ससुराल पहुँचाने में ही जाऊँगा।
(10) i. सरल वाक्य
ii. 1. सचमुच कितनी निर्दयी हूँ मैं।
2. क्या सैकड़ों मनुष्यों ने भोजन किया?
(11) i. रंगीन फूलों की माला बहुत सुंदर लग रही थी।
ii. लड़के की तरफ मुखातिब होकर रामस्वरूप ने कुछ कहना चाहा।
iii. कन्हैयालाल मिश्र जी बिड़ला की पुस्तक पढ़ने लगे।
विभाग 5 – उपयोजित लेखन
सूचना:- आवश्यकतानुसार परिच्छेद में लेखन अपेक्षित है।
प्रश्न 4.
सूचनाओं के अनुसार लेखन कीजिए: [26]
(अ (1) पत्रलेखन: [5]
निम्नलिखित जानकारी के आधार पर पत्रलेखन कीजिए:
राज/राजश्री अगरवाल, 20 वरद सोसायटी, सायन, पूर्व, मुंबई से अपने दादा जी रमेश अगरवाल, राधा निवास, आदर्श कॉलोनी, संगमनेर को 75 वें जन्मदिन पर बधाई देते हुए पत्र लिखता / लिखती है।
अथवा
मथुरा / मयुर त्रिवेदी, 12 मॉडेल कॉलोनी, शास्त्री नगर, नारायण गाँव से व्यवस्थापक विजय पुस्तकालय, म. गांधी पंथ, राजगुरुनगर को सूचीनुसार पुस्तकें प्राप्त न होने की शिकायत करते हुए पत्र लिखती/ लिखता है। (2)
(2) गद्य आकलन- प्रश्ननिर्मिति:
निम्नलिखित गद्यांश पढ़कर ऐसे चार प्रश्न तैयार कीजिए जिनके उत्तर गद्यांश में एक-एक वाक्य में हों: [4]
हर्ता मूलर को २००९ में साहित्य का नोबेल पुरस्कार मिला। उनका जन्म रोमानिया में हुआ। बचपन में उन्हें गाय चराने भेज दिया जाता, जहाँ उनके पास कोई खास काम नहीं होता। वह जिन फूलों को इकट्ठा करती, उन्हें कोई न कोई नाम देती, आकाश में धीमे-धीमे उड़ते बादलों की आकृति को किसी व्यक्ति का नाम देती और खुश होती। उन दिनों वह सोच भी नहीं सकती थी कि एक दिन उसे साहित्य का नोबेल पुरस्कार मिलेगा। वह ज्यादा से ज्यादा अपनी चाची की तरह एक महिला दर्जी बनने के बारे में सोच सकती थी। उन दिनों वहाँ निकोलाई चाउसेस्की का तानाशाही शासन था और उसके परिवार पर कड़ी निगरानी रखी जाती थी। शासन का एक भय लोगों में बना रहता था। |
(आ) (1) वृत्तांत लेखनः [5]
प्रगति विद्यालय, वर्धा में मनाए गए ‘बालिका दिवस’ समारोह का 60 से 80 शब्दों में वृत्तांत लेखन कीजिए।
(वृत्तांत में स्थल, काल, घटना का उल्लेख होना अनिवार्य है।)
अथवा
कहानी लेखन:
निम्नलिखित मुद्दों के आधार पर 70 से 80 शब्दों में कहानी लिखकर उसे उचित शीर्षक दीजिए तथा सीख लिखिए:
एक गाँव – अस्वच्छता के कारण लोगों का बीमार होना – गाँव के युवा दल द्वारा कूड़ा-कचरा एकत्रित करना – नई योजना बनाना – खाद तैयार करके लोगों में बाँटना गाँव का रूप बदलना गाँव को पुरस्कार प्राप्त होना।
(2) विज्ञापन लेखन:
निम्नलिखित जानकारी के आधार पर 50 से 60 शब्दों में विज्ञापन तैयार कीजिए:
(इ) निबंध लेखन:
निम्नलिखित विषयों में से किसी एक विषय पर 80 से 100 शब्दों में निबंध लिखिए:
(1) मैं पृथ्वी बोल रही हूँ ……..
(2) काश! बचपन लौट आता ……..
(3) अनुशासन का महत्त्व ……..
उत्तर:
(अ) (1) 1 जनवरी, 2021
रमेश अगरवाल,
राधा निवास,
आदर्श कॉलोनी,
संगमनेर
[email protected]
पूज्य दादा जी,
सादर चरणस्पर्श
मेरे प्यारे दादा जी आपको 75वें जन्मदिन की ढेर सारी शुभकामनाएँ इस बार पिता जी को कार्यालय से अवकाश न मिलने के कारण हम सभी आपका जन्मदिन एकसाथ नहीं मना पाएँगे। हम सभी को इस बात का बहुत दुख है। पिता जी ने कहा है कि वे जैसे ही कार्यालय से अवकाश मिलता है, वे हम सभी को लेकर आपसे मिलने चलेंगे।
मैं आपके जन्मदिन पर तोहफे के रूप में एक प्यारी सी घड़ी भेज रहा हूँ आप अपना जन्मदिन धूमधाम से मनाना और मुझे अपने जन्मदिन की तस्वीरें भेजना मत भूलना। आप व दादी जी अपनी सेहत का ध्यान रखिएगा। समय समय पर पत्र लिखते रहिएगा।
आपका प्रिय नाती,
राज
राज अगरवाल,
20, वरद सोसायटी,
सायन (पूर्व)
मुंबई।
[email protected]
अथवा
2 जनवरी, 2021
प्रति
माननीय व्यवस्थापक जी,
विजय पुस्तकालय,
म. गांधी पंथ,
राजगुरुनगर।
[email protected]
विषयः सूचीनुसार पुस्तकें प्राप्त न होने के संबंध में।
महोदय,
मैं आपके यहाँ से काफी समय से पुस्तकें मंगवा रहा हूँ। इस बार जो पुस्तकें मैने मंगवाई थीं, उनमें कुछ गड़बड़ी मुझे मिली है।
मेरे द्वारा भेजी गई पुस्तकों की सूची के अनुसार मुझे मेरी मनचाही पुस्तकें नहीं भेजी गई हैं। इनमें कुछ पुस्तकें कम हैं। मुझे बड़े दुख के साथ कहना पड़ रहा है कि इस बार आपके यहाँ से पुस्तकें भेजने में लापरवाही की गई है।
जो पुस्तकें मुझे नहीं मिली हैं, उनकी सूची मैं आपको पुनः भेज रहा हूँ। कृपया उन्हें तत्काल भेजने का प्रबंध करें।
पुस्तकों की सूची | नग |
गबन – प्रेमचंद जी | 1 |
रामचरितमानस – गोस्वामी तुलसीदास जी | 2 |
रश्मिरथी – दिनकर जी | 1 |
पुस्तकें मिलते ही शेष सारी आपको भेज दी जाएगी।
धन्यवाद।
भवदीय,
मथुर
मयुर त्रिवेदी,
मॉडेल कॉलोनी,
शास्त्री नगर,
नारायण गाँव।
[email protected]
(2) 1. हर्ता मूलर को साहित्य का नोबेल पुरस्कार कब मिला?
2. हर्ता मूलर का जन्म कहाँ हुआ?
3. हर्ता मूलर की चाची पेशे से क्या थीं?
4. हर्ता मूलर को बचपन में कहाँ भेज दिया जाता था?
(आ) (1) बालिका दिवस समारोह संपन्न
वर्धा। प्रगति विद्यालय में 24 जनवरी 2019 को ‘बालिका दिवस’ के रूप में मनाया गया। विद्यालय के सभागृह में प्रात: 7.30 बजे से बालिका दिवस के समारोह का आयोजन किया गया था।
इस समारोह की अध्यक्ष व प्रमुख अतिथि के रूप दयानंद कॉलेज की प्राचार्या श्रीमती के. एन. सिंह ने शिरकत की। सरस्वती वंदना के पश्चात विद्यालय के उपप्रधानाचार्य श्री वर्मा ने शॉल, श्रीफल व पुष्पगुच्छ देकर अध्यक्ष महोदया का स्वागत किया और उनका संक्षिप्त परिचय भी दिया। इसके बाद अध्यक्ष महोदया ने मंच पर रखे श्रीमती इंदिरा गाँधी के चित्र को पुष्पहार पहनाया।
इस अवसर पर अनेक वक्ताओं ने बालिका के महत्त्व पर अपने विचार प्रस्तुत किए। विद्यालय की प्रधानाचार्या तथा अध्यक्ष महोदया ने भी बालिकाओं के विभिन्न रूपों की महिमा पर प्रकाश डालते हुए बालिकाओं को सक्षम व सार्थक बनाने का संदेश दिया। विद्यालय के छात्रों ने ‘बालिका गौरव’ नामक लघुनाटिका प्रस्तुत की।
विद्यार्थियों की ओर से प्रत्येक महिला अतिथि व वक्ताओं को पुष्पगुच्छ भेंट किया गया। निरीक्षक श्री. बी. आर. वागेला ने आमंत्रित लोगों के एवं अध्यक्ष महोदया के प्रति आभार प्रकट किया। राष्ट्रगान के साथ 11.00 बजे समारोह का समापन हुआ।
अथवा
स्वच्छता का महत्त्व
बहुत समय पहले की बात है । दूर-दराज के क्षेत्र में रामपुर नाम का एक गाँव था। वहाँ के सभी लोग प्रेमपूर्वक रहते थे। उस गाँव के सभी लोगों में सारी अच्छाई थी, लेकिन उनमें एक बुराई भी थे। वे स्वच्छता के प्रति जागरूक नहीं थे। अस्वच्छता के कारण धीरे- धीरे गाँव में गंदगी फैल गई। गंदगी के कारण गाँव के लोग बीमार पड़ने लगे उस गाँव के युवाओं ने जो पढ़ाई-लिखाई करते थे, उन्होंने बीमारी के कारण का पता लगाने की कोशिश की।
उन्होंने जब चिकित्सकों से संपर्क किया, तो उन्हें पता चला कि गंदगी के कारण गाँव के सभी लोग बीमारी का शिकार हो रहे हैं। गाँव के युवाओं को बीमारी के कारण का पता चल चुका था । अतः उन्होंने एक दल का गठन किया। उस दल ने गाँव का सारा कूड़ा-कचरा एकत्रित करना शुरू कर दिया। एक योजना के तहत गाँव के कचरे को गाँव से दूर एक बड़े से गड्ढे में एकत्रित किया जाने लगा।
एकत्रित कचरा धीरे-धीरे सडने व विभिन्न प्रक्रियाओं के चलते खाद में बदलने लगा। इसके अलावा दूसरी ओर गाँव के सभी लोग स्वस्थ हो गए। अब गाँव के युवा कचरे से खाद बनाकर गाँव के लोगों में बाँटने लगे। इस खाद के प्रयोग से खेतों को पैदावार बढ़ गई। गाँव के सभी लोग इस प्रकार कचरे से खाद बनाने की प्रक्रिया से बहुत प्रभावित हुए। धीरे-धीरे पूरा गाँव इस मुहिम में एकजुट हो गया। इस प्रकार पूरा गाँव तरक्की करने लगा और गाँव का रूप बदल गया।
रामपुर गाँव के विकास के कारणों का पता जब आस-पड़ोस के गाँवों को चला तो वे भी उसी राह पर चल पड़े। उस गाँव की पहल को ध्यान में रखते हुए राज्य सरकार द्वारा उस गाँव को पुरस्कृत भी किया गया।
सीख: सोच-समझकर किसी भी परेशानी का हल निकाला जा सकता है।
(2)
(इ) (1) मैं पृथ्वी बोल रही हूँ….
मैं पृथ्वी बोल रही हूँ। सभी जीव-जंतु मुझ पर ही रहते हैं। जमीन, आसमान, पेड़-पौधे सब कुछ मुझ में ही बसे हुए हैं। मैं हूँ इसलिए सभी का अस्तिव भी बना हुआ है। मेरे प्राकृतिक घटक पेड़ों के माध्यम से सभी जीवों को साँस लेने के लिए शुद्ध हवा, भोजन के लिए फल-सब्जी, घर के सामान के लिए लकड़ियाँ, बीमारी दूर करने के लिए दवाइयाँ आदि प्राप्त होते हैं। मेरे घटक पेड़ों से ही वर्षा होती है। उसी वर्षा से मनुष्य व सभी जीवों को पीने व अन्य कामों के लिए पानी मिलता है। मेरे प्राकृतिक घटक बादल वर्षा लाने में सहायक होते हैं। मेरा सबसे अधिक भाग पानी से घिरा हुआ है और अन्य भाग घ जंगलों व मनुष्यों की बस्तियों से घिरा हुआ है। सभी जीव मेरी ही गोद में जन्म लेकर पलते-बढ़ते हैं। वे मुझे माता के समान पूज्यनीय मानते हैं।
मेरे जन्म को लेकर कई बातें फैली हुई हैं। कई लोगों को मानना है कि मेरी उत्पत्ति भगवान के द्वारा हुई है, तो कइयों का मानना है कि अंतरिक्ष में हुए जोरदार धमाकों से चारों तरफ धूल के कण और पत्थर के टुकड़े फैल गए थे। गुरुत्वाकर्षण से वे सभी जुड़कर गोलाकार बन गए और उसी से मेरा जन्म हुआ है। मेरा जन्म कैसे हुआ है यह मैं नहीं जानती, परंतु मैं सभी को एक समान मानती हूँ। मैं किसी में भेदभाव नहीं करती। मैंने अपना सब कुछ सभी को समान रूप में दिया है, फिर भी मनुष्यों ने मुझे अलग-अलग स्थानों, देशों राज्यों आदि में बांट दिया है। मेरे प्राकृतिक घटकों का दुरुपयोग कर वे मुझे दूषित कर रहे हैं । मेरी गोद में पलने वाले जानवरों को क्षति पहुँचा रहे हैं। वे जानवरों के घरों को काटकर वहाँ अपने आलीशान मकान बना रहे हैं। वर्तमान युग में मुझ पर इतने अपराध बढ़ते जा रहे हैं कि उनकी बातें करना भी मेरे लिए दुख की बात है।
मनुष्य अपनी जरूरतों को पूरा करने के लिए मेरे घटक तालाब, समुद्र, नदी आदि में अपने कारखानों के हानिकारक रसायन व दूषित जल छोड़ रहे हैं। मनुष्य के द्वारा मुझे नुकसान पहुँचाने के कारण ही उन्हें बाढ़, सुनामी, भूकंप जैसी प्राकृतिक आपदाओं का सामना करना पड़ रहा है। मुझ पर कई सारे वीर योद्धाओं व वीरांगनाओं ने भी जन्म लिया है। मेरे कई हिस्सों पर अपना अधिकार जमाने के लिए मनुष्यों ने आपस में युद्ध किया है। इस युद्ध में जीत भले ही किसी की भी हुई हो, परंतु मृत्यु के मुख में जाने वाले सभी योद्धा मेरे पुत्र की तरह ही थे मुझ पर जन्म लेने वालों की मृत्यु होने पर मुझे बहुत दुख होता है। मैं बस यही चाहती हूँ कि मनुष्य मुझ पर सुख-शांति व भाइचारे के साथ रहें। वे खुश रहेंगे, तो मैं भी बहुत ही खुश रहूँगी।
प्रदूषण को रोकने का करो संकल्प,
पृथ्वी को बचाने का बस यही है विकल्प|
अथवा
(2) काश! बचपन लौट आता……..
बचपन की यादें हर व्यक्ति को जीवनभर आकर्षित करती रहती हैं। बड़े होने पर हम सभी अक्सर यही सोचते हैं कि काश! बचपन लौट आता। इसका मुख्य कारण यह होता है कि बचपन में व्यक्ति बिना किसी चिंता व भय के अपनी ही दुनिया में प्रसन्न रहता है। उसे दुनिया के प्रपंचों से कुछ लेना-देना नहीं होता है। वह बस अपनी ही दुनिया में मस्ती के साथ जीता है। अपनी उम्र के इस पड़ाव पर पहुँचने के बाद भी मुझे बार-बार यही विचार आता है कि काश! बचपन लौट आता।
बचपन में मैं भी हर बच्चे की तरह बहुत शरारत करता था। मैं भी विद्यालय जाने में आनाकानी करता था। लोगों को चिढ़ाना, अपने दोस्तों के साथ झगड़ा करना, दूसरों के पेड़ों से फल तोड़ना, दूसरों को तंग करना आदि कई प्रकार की शरारतें करता था। जब पढ़ाई करने का समय होता तो मैं अक्सर नींद आने अथवा पेट दर्द का बहाना बना लेता था। मैंने बचपन में पढ़ाई-लिखाई पर ठीक से ध्यान नहीं दिया और खूब गलतियाँ की। यदि मेरा बचपन लौट आता तो मैं अपने बचपन की गलतियों को सुधार लेता। मैं एक बार फिर बचपन में लौटने के बाद लोगों को परेशान नहीं करता और कोशिश करता की बदमाशी न करूँ। हालाँकि मैं बचपन में लौटने के बाद मौज-मस्ती करने में थोड़ी भी कमी न करता। काश! मेरा बचपन लौट आता तो मैं अपनी प्यारी दादी जो अब इस दुनिया में नहीं हैं, उनके साथ कुछ और समय गुजार सकता। मैं बचपन में गायों को चराता था। मुझे यह कार्य बहुत पसंद था। बचपन लौट आने पर मैं एक बार फिर गायों को चराना, उनसे दूध निकालना व उनके छोटे-छोटे बछड़ों के साथ खेलना चाहूँगा।
बचपन की यादें जीवन की सबसे खुशहाल यादें होती हैं। ये यादें हमें जीवन भर हँसाती-रुलाती हैं। बचपन के अच्छे बुरे कार्यों का परिणाम भी हमें कई बार जीवनभर भुगतना पड़ता है। अतः काश! बचपन लौट आता तो मैं अपने बचपन की सारी गलतियों को सुधार लेता। मैं अपने बचपन का भरपूर आनंद उठाता, लेकिन सही ढंग से अपने भविष्य की नींव भी रखता। इससे मेरा पूरा जीवन खुशियों से भर जाता।
अथवा
(3) अनुशासन का महत्त्व
जीवन में सफलता प्राप्त करना हर किसी का लक्ष्य होता है और इस सपने को साकार करने के लिए अनुशासन से अधिक कारगर अन्य कोई उपाय नहीं है। अनुशासन एक ऐसा चमत्कारी मंत्र है, जिससे जीवन को सुखी और संपन्न बनाया जा सकता है। अनुशासन का अर्थ नियमों का पालन करना होता है। नियमानुसार यदि हर कार्य को सही समय पर सही ढंग से पूरा कर दिया जाए, तो उन्नति के मार्ग अपने आप ही खुल जाते हैं।
मनमोहिनी प्रकृति भी अनुशासन की सीख देती है रोज समय पर सूर्योदय और सूर्यास्त होता है; चंद्रमा अपने समय पर उदित और अस्त होते हैं; ऋतुचक्र अपने समय पर बिना किसी निमंत्रण के आते और चले जाते हैं; पेड़-पौधों में भी समय पर ही फल-फूल लगते और फिर झड़ जाते हैं। प्रकृति के ये सभी क्रिया-कलाप मनुष्य को अनुशासन का महत्त्व समझाते हैं। यदि प्रकृति में होने वाले ये बदलाव समय पर और सही ढंग से न हों तो हर तरफ त्राहि-त्राहि मच जाएगी। पृथ्वी से जीवन नष्ट हो जाएगा। प्रकृति हमें सिखाती है कि अनुशासन जीवन का सार है और उसका पालन करना प्रत्येक जीव का कर्तव्य है।
अनुशासन का अर्थ यह नहीं है कि हर समय किसी के दबाव में कार्य करना, बल्कि हमें स्वयं अनुशासन को अपने जीवन का अभिन्न अंग बनाना चाहिए। अनुशासित व्यक्ति जीवन की प्रतिकूल परिस्थितियों में भी सही राह खोज लेता है। खासकर विद्यार्थी जीवन में अनुशासन का महत्त्व बहुत अधिक होता है। अनुशासन के सहारे विद्यार्थी अपने जीवन में अच्छी शिक्षा प्राप्त कर सकता है। अनुशासन का
जो बीज विद्यार्थी के मन में बोया जाता है, वह समय के साथ विशाल वृक्ष का रूप ले लेता है। इससे न सिर्फ उसका बल्कि उसके परिवार का भी जीवन सुखमय हो जाता है।
अनुशासन के बिना मानव का जीवन किसी जानवर की भाँति होता है। अनुशासनहीनता सिर्फ दुखों को न्यौता देती है। असफलता और दुखों से घिरा इंसान अक्सर राह भटककर बुराई के दलदल में धँसता चला जाता है। सामजिक प्राणी होते हुए भी अनुशासनहीन व्यक्ति असामाजिक गतिविधियों में लिप्त हो जाता है। इससे न सिर्फ उसपर, बल्कि उसके परिवार और पूरे समाज पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।
हमें यह खुले दिल से स्वीकार करने की आवश्यकता है कि अनुशासन सफलता की एकमेव कुंजी है। इसके सहारे हम स्वयं के साथ ही अपने देश के विकास में भी योगदान दे सकते हैं। इसीलिए हमें अनुशासन को मजबूरी नहीं, बल्कि जीवन की आवश्यकता के रूप में स्वीकार करना चाहिए। इस प्रकार की सोच के साथ ही सुखी और संपन्न जीवन की आधारशिला रखी जा सकती है।