Balbharti Maharashtra State Board Class 9 Hindi Solutions Hindi Lokvani Chapter 6 ‘इत्यादि’ की आत्मकहानी Notes, Textbook Exercise Important Questions and Answers.
Maharashtra State Board Class 9 Hindi Lokvani Solutions Chapter 6 ‘इत्यादि’ की आत्मकहानी (पठनार्थ)
Hindi Lokvani 9th Std Digest Chapter 6 ‘इत्यादि’ की आत्मकहानी Textbook Questions and Answers
1. रचनात्मकता की ओर मौलिक सृजन
प्रश्न 1.
‘धन्यवाद’ शब्द की आत्मकथा अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर :
मनुष्य से मेरा संबंध बहुत नजदीक का है। मैं उसके जीवन के हर क्षण में उसका साथ देता हूँ। मन की कृतज्ञता प्रकट करने के लिए धन्यवाद’ यानी मैं बेहद उपयोगी शब्द हूँ परंतु अब हमें औपचारिकता माना जाता है इसलिए जिनको हम ‘अपना’ कहते हैं उनके लिए मेरा प्रयोग कम किया जाता है। मनुष्य मेरा प्रयोग करके व्यंग्य भी करता है। आज के युग में मनुष्य मेरा गलत इस्तेमाल कर रहा है, मैं सिर्फ एक औपचारिकता बनकर रह गया हूँ।
कभी-कभी मुझे गर्व भी महसूस होता है जब किसी को गले लगाकर, पाँव छूकर या हाथ मिलाकर अपनों को धन्यवाद कहते हैं, तब इसके बहुत फायदे होते हैं। जब कभी कोई मेरा प्रयोग करता है तो उसके मन की भावनाएँ व्यक्त हो जाती हैं और किसी दूसरे को खुशी भी प्राप्त हो जाती है। मुझे तब बहुत प्रसन्नता होती है जब मेरे प्रयोग से आपके रिश्तों को मजबूती मिलती है। मेरे कारण तनाव कम करने, रोग प्रतिरोधी क्षमता बढ़ाने और कृतज्ञता जाहिर करने में भी लोगों के लिए बहुत महत्त्वपूर्ण है।
किसी के व्यक्तित्व या कृति के प्रति आपके प्रशंसात्मक व्यवहार की झलक भी मेरे द्वारा ही दिखती है। वैसे भी हमने जो किया, उसका असर क्या हुआ, यह कौन नहीं जानना चाहेगा। मेरा प्रयोग करके आप अनजान व्यक्ति के हृदय में भी एक पहचान अंकित कर देते हैं। आज लोग मेरा प्रयोग खरे में, खोटे में, असली में, नकली में सभी जगह कर रहे हैं। आखिर, जो भी कुछ हो, मुझे सुनकर सभी के चेहरों पर प्रसन्नता छा जाती है।
2. संभाषणीय :
प्रश्न 1.
अपने विद्यालय में मनाई गई खेल प्रतियोगिताओं में से किसी एक खेल का आँखों देखा वर्णन कीजिए।
उत्तर:
हमारे विद्यालय में खेलकूद प्रतियोगिता का आयोजन किया गया। जिसमें अनेक विद्यालयों की टीमों ने भाग लिया। जिसमें किक्रेट मैच का आयोजन भी किया गया था, उसमें मेरे विद्यालय की टीम ने भी भाग लिया। मार्च का सुहावना दिन था। नौ बजे दोनों टीमों के कप्तान और अंपायर मैदान के मध्य में आ गए। टॉस हुआ, जिसमें हमारे कप्तान ने बाजी मारी। हमारे कप्तान ने पहले बल्लेबाजी करने का निर्णय लिया। पंद्रह मिनट के अंतराल पर हमारी टीम की सलामी जोड़ी मैदान पर उतरी।
विपक्षी टीम के कप्तान ने फील्डिंग सजाई। दोनों निर्णायक अपने-अपने स्थान पर खड़े हो गए। गेंदबाज ने पहले ओवर में बहुत सटीक गेंदबाजी की। तेज गेंदबाज को विकेट की नमी का फायदा मिल रहा था। तीसरे ओवर से हमारे बल्लेबाजों ने जम कर प्रहार करना आरंभ कर दिया। कुछ शानदार चौके और तीन छक्के लगे। दस ओवर की समाप्ति पर हमारी टीम ने एक विकेट खोकर साठ रन बना लिए थे। पारी को ठोस शुरूआत मिल चुकी थी। मध्यक्रम में बल्लेबाजों ने भी संभलकर खेलना आरंभ किया।
जब उनकी आँखें जम गई तो उन्होंने चौकों और छक्के की झड़ी लगा दी। पारी समाप्त होने तक हमारी टीम ने आठ विकेट पर दो सौ पचहत्तर रनों का विशाल स्कोर खड़ा कर दिया। तीस मिनट के अंतराल के बाद खेल पुन: आरंभ हुआ। अब हमारी टीम क्षेत्ररक्षण करने उतरी। गेंदबाजी आरंभ हुई। विपक्ष के सलामी बल्लेबाजों ने अपनी टीम को ठोस शुरूआत दी। उन्होंने बिना विकेट खोए पचास रन बना लिए। अगले ओवर में विपक्षी टीम को झटका लगा।
अब तो हमारे गेंदबाज विपक्षी बल्लेबाजों पर हावी हो गए। रनों की गति पर अंकुश लग गया। हमारे कप्तान ने गेंदबाजी में लगातार परिवर्तन करते हुए विपक्षी टीम को दबाव में डाले रखा। अभी वे दो सौ रन का आँकड़ा भी पार नहीं कर पाए थे उनका पहले पाँचवाँ, फिर छठा विकेट गिर गया। हमारे खिलाड़ियों में जोश की लहर दौड़ गई। अब मैच पर हमारी टीम की पकड़ मजबूत दिखाई देने लगी। चालीस ओवर की समाप्ति पर विपक्षी टीम ने सात विकेट खोकर एक सौ अस्सी रन बनाए थे।
उनके विकेटों का पतन तेज गति से हो रहा था और रन धीमी गति से बन रहे थे। अंततः पूरी विपक्षी टीम उन्चासवें ओवर में दो सौ छत्तीस रन बना कर आउट हो गई। हमारी टीम के खिलाड़ी ओर समर्थक खुशी से उछल पड़े। दूसरी ओर विपक्षी टीम के खिलाड़ी उदास दिखाई दे रहे थे। मैच की समाप्ति पर पुरस्कार वितरण समारोह हुआ। जिले के शिक्षा अधिकारी ने विजेता टीम को ट्रॉफी प्रदान की।
हमारी टीम के उस गेंदबाज को ‘मैन ऑफ द मैच’ का पुरस्कार दिया गया जिसने मात्र छत्तीस रन देकर चार विकेट लिए थे। समारोह की समाप्ति पर खिलाड़ी और दर्शक अपने-अपने निवास स्थान की ओर लौटने लगे। इस रोमांचक मैच की यादें हमारे मन में आज भी अंकित हैं।
Hindi Lokvani 9th Std Textbook Solutions Chapter 6 ‘इत्यादि’ की आत्मकहानी Additional Important Questions and Answers
(क) गद्यांश पढ़कर दी गई सूचना के अनुसार कृतियाँ कीजिए।
कृति क (1) : आकलन कृति
प्रश्न 1.
आकृति पूर्ण कीजिए।
उत्तर:
प्रश्न 2.
समझकर लिखिए।
उत्तर:
प्रश्न 3.
निम्नलिखित विधान सत्य है या असत्य लिखिए।
i. सभी ने इत्यादि के जीवन की कहनी कही।
ii. ‘शब्द-समाज’ में इत्यादि का सम्मान कुछ कम नहीं है।
उत्तर:
i. असत्य
ii. सत्य
कृति क (2) : शब्द संपदा
प्रश्न 1.
निम्नलिखित शब्दों के विलोम शब्द लिखिए।
i. अपमान …………….
ii. असाधारण ……………
उत्तर :
i. सम्मान
ii. साधारण
प्रश्न 2.
निम्नलिखित शब्दों में उचित प्रत्यय लगाकर नए शब्द बनाइए।
i. सम्मान
ii. गुण
उत्तर :
i. सम्मानित – ‘इत’ प्रत्यय
i. गुणी – ‘ई’ प्रत्यय
वाक्य : रोहन हर बात में अपने मुँह मियाँ मिठू बनता है।
प्रश्न 3.
निम्नलिखित के वचन बदलिए।
i. लेखक
ii. कहानी
उत्तर :
i. लेखकगण
ii. कहानियाँ
कृति क (3) : स्वमत अभिव्यक्ति
प्रश्न 1.
‘इत्यादि’ शब्द के महत्त्व के बारे में अपने विचार व्यक्त कीजिए।
उत्तर :
समाज में ‘इत्यादि’ शब्द का बहुत सम्मान है। वक्ता और लेखक को इस शब्द का प्रयोग करना ही पड़ता है। दिनभर में इस शब्द का प्रयोग कई बार किया जाता है। शब्द-समाज में यदि इत्यादि’ न रहता तो लेखकों और वक्ताओं की न जाने कैसी दशा ोती? इस शब्द का प्रयोग कहीं पर भी किया जा सकता है। शब्द समाज में ऐसे कई शब्द हैं जिनका अपना अलग महत्त्व है। इस शब्द का उपयोग भी होता है और कई बार दुरुपयोग भी होता है। इस शब्द के माध्यम से लेखक और वक्ता नमक मिर्च लगाकर खूब वाह-वाही हासिल कर लेते हैं।
(ख) गद्यांश पढ़कर दी गई सूचना के अनुसार कृतियाँ कीजिए।
कृति ख (1) : आकलन कृति
प्रश्न 1.
आकृति पूर्ण कीजिए।
उत्तर :
प्रश्न 2.
रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए।
i. मेरी माता का नाम ………. और पिता का नाम ………….. है।
ii. वे ………….. से विचरते हैं।
उत्तर :
i. ‘इति’, ‘आदि’
ii. स्वाधीनता
कृति ख (2) : शब्द संपदा
प्रश्न 1.
निम्नलिखित शब्दों के समानार्थी शब्द लिखिए।
i. स्वाधीन
ii. कृपा
उत्तर:
i. स्वतंत्र
ii. दया
प्रश्न 2.
निम्नलिखित शब्दों के वचन परिवर्तन कीजिए।
i. लड़का
ii. भारत
उत्तर:
i. लड़के
ii. भारत
कृति ख (3) : स्वमत अभिव्यक्ति
प्रश्न 1.
हिंदी व्याकरण में ‘उपसर्ग और प्रत्यय का महत्त्व’, इस पर अपने विचार स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
‘उपसर्ग’ वे शब्दांश होते हैं जो किसी शब्द के पूर्व में लगकर उस शब्द का अर्थ बदल देते हैं, या उसमें नई विशेषता उत्पन्न कर देते हैं। ‘प्रत्यय’ उन शब्दों को कहते हैं जो किसी अन्य शब्द के अंत में लगाए जाते हैं। इनके प्रयोग से शब्दों के अर्थ में भिन्नता या वैशिष्ट्य आ जाता है। उपसर्ग और प्रत्यय के प्रयोग से शब्दों का अर्थ बदल जाता है और वह विशेष अर्थ प्रकट करने लगते हैं। हिंदी व्याकरण में इनका विशेष महत्त्व हैं।
(ग) गद्यांश पढ़कर दी गई सूचना के अनुसार कृतियाँ कीजिए।
कृति ग (1) : आकलन कृति
प्रश्न 1.
समझकर लिखिए।
उत्तर:
प्रश्न 2.
सही विकल्प चुनकर पूर्ण वाक्य फिर से लिखिए ।
i. परोपकार और दूसरे का मान रखना तो मानो मेरा …………….
(क) कर्तव्य है
(ख) धर्म है।
(ग) स्वभाव हैं।
उत्तर:
(क) कर्तव्य है
ii. उनका मन फिर ज्यों का त्यों ………..
(क) आनंदित हो उठा।
(ख) हरा-भरा हो उठा।
(ग) दुःखी हो उठा।
उत्तर:
(ख) हरा-भरा हो उठा।
कृति ग (2) : शब्द संपदा
प्रश्न 1.
प्रत्यय अलग करके लिखिए। –
i. दरिद्रता
ii. निर्धनता
उत्तर :
i. दरिद्र + ता (प्रत्यय)
ii. निर्धन + ता (प्रत्यय)
प्रश्न 2.
विलोम शब्द लिखिए।
i. राजा …
ii. पंडित ……….
उत्तर:
i. रंक
ii. मूर्ख
कृति ग (3) : स्वमत अभिव्यक्ति
प्रश्न 1.
‘परोपकार एक मानवीय गुण है’ इस पर अपने विचार लिखिए।
उत्तर :
मनुष्य के कर्म की सुंदरता जिन गुणों में प्रकट होती है- उनमें परोपकार सर्वोपरि है। दान, त्याग, सहिष्णुता, धैर्य और ईश्वरीय सृष्टि का सम्मान करना आदि अनेक गुण परोपकार में आते हैं। प्रकृति ही हमें परोपकार का पाठ सिखाती है। सूर्य, वायु, वन, पर्वत, पेड़-पौधे, नदियाँ, वनस्पतियाँ सभी हमें सरस फल प्रदान करते हैं। मनुष्यता की कसौटी परोपकार है। जगत-कल्याण के लिए शिव ने विषपान किया; देवताओं की रक्षा के लिए दधिची ने अपनी हड्डियों का दान किया। अत: स्पष्ट है कि आदिकाल से ही परोपकार एक मानवीय गुण है।
(घ) गद्यांश पढ़कर दी गई सूचना के अनुसार कृतियाँ कीजिए।
कृति घ (1) : आकलन कृति
प्रश्न 1.
संजाल पूर्ण कीजिए।
उत्तर:
प्रश्न 2.
निम्नलिखित विधान सत्य है या असत्य लिखिए।
i. समालोचक महाशय का किसी ग्रंथकार के साथ मनमुटाव चल रहा था।
ii. समालोचक की पुस्तक ग्रंथकार के सामने आई।
उत्तर:
i. सत्य
ii. असत्य
कृति घ (2) : शब्द संपदा
प्रश्न 1.
विलोम शब्द लिखिए।
i. अतृप्ति
ii. योग्यता
उत्तर :
i. तृप्ति
ii. अयोग्यता
प्रश्न 2.
निम्नलिखित शब्दों के वचन परिवर्तन कीजिए।
i. पुस्तक
ii. पाठक
उत्तर :
i. पुस्तकें
ii. पाठकगण
कृति घ (3) : स्वमत अभिव्यक्ति
प्रश्न 1.
‘धन्यवाद शब्द के हो रहे अत्यधिक प्रयोग’ पर अपने विचार व्यक्त कीजिए।
उत्तर :
आजकल धन्यवाद शब्द का बहुत प्रयोग किया जा रहा है। कभी कभी हम कार्य नहीं करते फिर भी दूसरे हमें ‘धन्यवाद’ देते हैं। इस प्रसंग पर कहे गए धन्यवाद शब्द में हमारे प्रति कृतज्ञता का भाव नहीं होता है बल्कि व्यंग्य होता है। व्यंग्य इसलिए क्योंकि हमने वह कार्य किया ही नहीं फिर भी धन्यवाद कहा जाता है। जब हम दूसरों के लिए कुछ भी नहीं कर पाते है तब हमें ‘धन्यवाद’ शब्द निरर्थक महसूस होता है। उस शब्द में छिपा व्यंग्य हमारे मन को आघात पहुँचाता है और हम परेशान हो जाते हैं।
(ङ) गद्यांश पढ़कर दी गई सूचना के अनुसार कृतियाँ कीजिए।
कृति छ (1) : आकलन कृति
प्रश्न 1.
संजाल पूर्ण कीजिए।
उत्तर :
प्रश्न 2.
सही उत्तर लिखिए।
उत्तर :
प्रश्न 3.
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर एक शब्द में लिखिए।
- ‘इत्यादि’ किसे विद्वान बनाता है ?
- किसके पहुँचते ही अधूरा विषय भी पूरा हो जाता है
- संसार का नियम क्या है?
उत्तर:
- मूर्ख को
- इत्यादि के
- परिवर्तन
कृति छ (2) : शब्द संपदा
प्रश्न 1.
वचन बदलिए।
i. समालोचना ………..
ii. आँख ……….
उत्तर :
i. समालोचनाएँ
ii. आँखें
प्रश्न 2.
विलोम शब्द लिखिए।
i. आदि …….
ii. परिवर्तित ………….
उत्तर:
i. अंत
ii. अपरिवर्तित
कृति ङ (3) : स्वमत अभिव्यक्ति
प्रश्न 1.
‘परिवर्तन संसार का नियम है।’ इस पर अपने विचार व्यक्त कीजिए।
उत्तर:
इस संसार में कुछ भी अपरिवर्तनशील नहीं है। सब कुछ नश्वर और क्षण भंगूर है। जो परिवर्तन और अनित्यता को समझता है वही ज्ञानी है, इंसान दु:ख के सिवाय हर चीज को सदा एक जैसा बनाए रखने की कोशिश करता है। इसमें वह कोई परिवर्तन नहीं चाहता है। परंतु यह कैसे संभव है कि संसार में परिवर्तन ही न हो। जिसका जन्म हुआ है उसकी मृत्यु निश्चित है, जो युवा होगा वह वृद्ध अवश्य होगा, उसके जीवन में दुख है तो सुख भी आएगा यह मानव के अस्तित्व व विकास के लिए आवश्यक है। जिस प्रकार प्रकृति में परिवर्तन होता है वैसे ही संसार में भी परिवर्तन होता है। यदि संसार में परिवर्तन नहीं होता तो आज का युग इतना प्रगतिशील नहीं होता। आज मनुष्य इतनी उड़ाने नहीं भरता। यह सब परिवर्तन की ही देन है।
भाषाई कौशल पर आधारित पाठ्यगत कृतियाँ
प्रश्न 1.
भाषा बिंदु :
उत्तर:
‘इत्यादि’ की आत्मकहानी Summary in Hindi
लेखक-परिचय :
जीवन-परिचय : अखौरी जी आधुनिक हिंदी के प्रमुख साहित्यकार हैं। ये ‘भारत मित्र’, ‘शिक्षा’, ‘विद्या विनोद’, पत्र-पत्रिकाओं के संपादक रह चुके हैं। इनके वर्णनात्मक निबंध विशेष रूप से पठनीय हैं।
गद्य-परिचय :
वर्णनाताक कहानी : इसके अंतर्गत सजीव, निर्जीव, वस्तु, प्राणी, मनुष्य, स्थान, शब्द-विशेष, प्राकृतिक या अन्य दृश्यों, यात्रा आदि का वर्णन किया जाता है।
प्रस्तावना : प्रस्तुत पाठ ‘इत्यादि’ की आत्मकहानी के माध्यम से लेखक यशोदानंद अखौरी जी ने इत्यादि शब्द के उपयोग, सदुपयोग-दुरुपयोग से संबंधित जानकारी अपने लेख के रूप में प्रदान की है।
सारांश :
‘इत्यादि’ की आत्मकहानी के माध्यम से लेखक बताते हैं कि ‘इत्यादि’ न रहता तो लेखकों और वक्ताओं की बहुत दुर्दशा होती। इत्यादि के प्रयोग से ही वे सम्मान पाते हैं, पर उसके लिए एक वाक्य भी किसी की लेखनी ने आज तक नहीं लिखी। इसलिए वह आज स्वयं ही अपनी कहानी कहने और गुणगान करने बैठा है।
आजकल चारों ओर इत्यादि ही इत्यादि है। जहाँ देखिए वहीं वह परोपकार के लिए उपस्थित है। चाहे राजा हो, या रंक, चाहे पंडित हो या मूर्ख, किसी के घर आने-जाने में संकोच नहीं करता। अपनी मानहानि नहीं समझता। इसीलिए वह सबका प्यारा है। वह छोटे-छोटे वक्ताओं और लेखकों की दरिद्रता तुरंत दूर कर देता है। अल्पज्ञानी भी इत्यादि का सहयोग पाकर बड़े-बड़े मंचों पर ‘इत्यादि-इत्यादि’ का प्रयोग कर अपने को महापंडित सिद्ध कर देता है।
इत्यादि मूर्ख को विद्वान बनाता है, ऐसे लोगों को युक्ति सुझाता है। लेखक को यदि भाव व्यक्त करने की भाषा नहीं आती, तो भाषा जुटाता है। कवि को उपमा नहीं मिलती तो उपमा बताता है। अब तो उसका प्रयोग आदि के रूप में होने लगा है।
शब्दार्थ :
- वक्ता – बोलनेवाला
- सतर – पंक्ति
- अवलंब – सहारा
- गुणावली – गुणगान
- मिती – महिने की तिथी
- विचरना – घूमना-फिरना, चलना
- विख्यात – प्रसिदध
- कदाचित – शायद
- सर्वत्र – चारों ओर
- ठौर – जगह
- रंक – दरिद्र
- दृष्टांत – उदाहरण
- वक्तृत्व – व्याख्यान
- ग्लानि – खिन्नता, दुःख
- निबाह – गुजारा, पालन
- एक बारगी – अचानक, एक बार में
- समालोचक – समीक्षक, आलोचक
- मनमुटाव – वैमनस्य
मुहावरे :
- नमक-मिर्च लगाना – बढ़ा-चढ़ाकर बातें कहना।
- कलई खुलना – भेद खुलना, रहस्योद्घाटन होना।
- अपने मुँह मियाँ मिठू बनाना – अपनी प्रशंसा स्वयं करना।
- जी में जी आना – धीरज बंधाना
- धीरज बँधना – धीरज बढ़ाना।
- पौ-बारह झेना – अच्छा फायदा होना।