Maharashtra Board Class 11 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 12 सहर्ष स्वीकारा है

Balbharti Maharashtra State Board Hindi Yuvakbharati 11th Digest Chapter 12 सहर्ष स्वीकारा है Notes, Textbook Exercise Important Questions and Answers.

Maharashtra State Board 11th Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 12 सहर्ष स्वीकारा है

11th Hindi Digest Chapter 12 सहर्ष स्वीकारा है Textbook Questions and Answers

आकलन

1. सूचनाओं के अनुसार कृतियाँ कीजिए :

प्रश्न अ.
घटनाक्रम के अनुसार लिखिए –
(1) कवि दंड पाना चाहता है।
(2) विधाता का सहारा पाना चाहता है।
(3) कवि का मानना है कि जो होता-सा लगता है, वह विधाता के कारण होता है।
उत्तर :
(1) कवि दंड पाना चाहता है।
उत्तर :
कवि दंड पाना चाहता है।

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(2) विधाता का सहारा पाना चाहता है
उत्तर :
विधाता का सहारा पाना चाहता है।

(3) कवि का मानना है कि जो होता-सा लगता है, वह विधाता के कारण होता है।
उत्तर :
कवि मानता है कि जो होता-सा लगता है, वह विधाता के कारण होता है।

प्रश्न आ.
निम्नलिखित असत्य कथनों को कविता के आधार पर सही करके लिखिए –
(a) जो कुछ निद्रित अपलक है, वह तुम्हारा असंवेदन है।
उत्तर :
जो कुछ भी जाग्रत है, अपलक है वह तुम्हारा संवेदन है।

(b) अब यह आत्मा बलवान और सक्षम हो गई है और छटपटाती छाती को वर्तमान में सताती है।
उत्तर :
अब यह आत्मा कमजोर और अक्षम हो गई है और छटपटाती छाती को भवितव्यता सताती है।

काव्य सौंदर्य

2.
प्रश्न अ.
‘जो कुछ भी मेरा है वह तुम्हें प्यारा हैं’, इस पंक्ति से कवि का मंतव्य स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
कवि के जीवन में जो कुछ भी है या जो कारण है उसकी सत्ता स्थितियाँ भविष्य की उन्नति या अवनति की सभी संभावनाएँ प्रियतमा के कारण हैं। कवि का हर्ष-विषाद, उन्नति-अवनति सदा उससे ही संबंधित है। कवि ने हर सुख-दुःख सफलताअसफलता को प्रसन्नतापूर्वक इसलिए स्वीकार किया है क्योंकि प्रियतमा ने उन सबको अपना माना है। वे कवि के जीवन से पूरी तरह जुड़ी हुई हैं।

प्रश्न आ.
‘जाने क्या रिश्ता है, जाने क्या नाता है जितना भी उँडेलता हूँ, भर-भर फिर आता है’, इन पंक्तियों का आशय स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
कवि कहता है कि तुम्हारे हृदय के साथ न जाने कौन-सा संबंध है या न जाने कैसा नाता है कि मैं अपने भीतर समाए हुए तुम्हारे स्नेह रूपी जल को जितना बाहर निकालता हूँ, वह पुन: अंत:करण में चारों ओर से सिमटकर चला आता है। ऐसा लगता है मानो हृदय में कोई झरना बह रहा है।

अभिव्यक्ति

3.
प्रश्न अ.
‘अपनी जिंदगी को सहर्ष स्वीकारना चाहिए’, इस कथन पर अपने विचार लिखिए।
उत्तर :
जीवन सुख-दुःख का चक्र है। यही जीवन का सत्य है। अनुकूल समय में हमें इस पर विचार करने की आवश्यकता नहीं होती। जब कभी हमारे समक्ष विपरीत परिस्थितियाँ आती हैं तो हम किंकर्तव्यविमूढ़ हो जाते हैं। दुःख के प्रमुख कारण बाहरी परिस्थितियाँ, आसपास के व्यक्तियों का व्यवहार, महत्त्वाकांक्षाएँ एवं कामनाएँ हैं। जीवन में आई प्रतिकूल परिस्थितियाँ एवं समस्याओं के लिए कोई दूसरा व्यक्ति या भाग्य दोषी नहीं है।

उसके लिए हम स्वयं ही जिम्मेदार है, हमारे कर्मों और व्यवहार की वजह से ही परिस्थितियाँ निर्मित होती हैं। हमारी ऊर्जा का उपयोग काम में हो परिणाम में नहीं। जो बदला नहीं जा सकता, उसको सहर्ष स्वीकार करें, यही उपाय है।

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प्रश्न आ.
‘जीवन में अत्यधिक मोह से अलग होने की आवश्यकता है, इस वाक्य में व्यक्त भाव प्रकट कीजिए।
उत्तर :
आज अगर दुनिया में किसी भी रिश्ते में मोह है, तो वह रिश्ता ज्यादा समय तक नहीं चल पाता। हमें मोह को त्याग देना चाहिए।

जब भी कोई इंसान मोह करता है, तो कहीं ना कहीं उसका ही नुकसान होता है। मोह के कारण हमारी संपत्ति, रिश्ते-नाते सभी बिगड़ जाते हैं इसलिए हमें मोह को अपनी जिंदगी से बिल्कुल पूरी तरह से निकाल देना चाहिए।

एक इंसान अपनी जिंदगी में अगर मोह करता है तो कुछ समय के लिए ही फायदा होगा, बाद में उसका नुकसान होता है। आज हमारे देश में, परिवार में झगड़े होते हैं इसका सबसे बड़ा कारण मोह है। मोह के कारण एक-दूसरे को धोखा देते हैं और उससे हमारे रिश्ते खराब होते हैं। मोह करने से हमें जो कुछ हासिल होता है, वह हमारे रिश्ते-नातों से कीमती नहीं होता इसलिए लालच (मोह) बुरी बला है।

रसास्वादन

4. प्रस्तुत नई कविता का भाव तथा भाषाई विशेषताओं के आधार पर रसास्वादन कीजिए।
उत्तर :
(i) शीर्षक : सहर्ष स्वीकारा है।
(ii) रचनाकार : गजानन माधव मुक्तिबोध’।।
(iii) केंद्रीय कल्पना : प्रस्तुत नई कविता में कवि ने जिंदगी में जो कुछ भी (दुख, संघर्ष, गरीबी, अभाव, अवसाद) मिलें उसे सानंद स्वीकार करने की बात कही है। प्रकृति को जो कुछ भी प्यारा है वह उसने हमें सौंपा है। इसीलिए जो कुछ भी मिला है या मिलने की संभावना है उसे सहजता से अपनाना चाहिए।
(iv) रस / अलंकार : मुक्त छंद में लिखी गई इस कविता में गरबीली गरीबी, विचार-वैभव में अनुप्रास अलंकार की छटा है।
(v) प्रतीक विधान : अंधकार, अमावस्या निराशा के प्रतीक है।

(vi) कल्पना : ‘दिल में क्या झरना है?’ पंक्ति में कवि कल्पना करते हैं कि झरने में जैसे चारों तरफ की पहाड़ियों से पानी इकट्ठा होता है और कभी खाली नहीं होता वैसे ही कवि के हृदय में अपनी प्रियतमा के प्रति प्रेम उमड़ता है और बार बार व्यक्त करने पर भी कम नहीं होता।

(vii) पसंद की पंक्तियाँ तथा प्रभाव : अब तक तो जिंदगी में जो कुछ था, जो कुछ है सहर्ष स्वीकारा है; इसलिए कि जो कुछ भी मेरा है वह तुम्हें प्यारा है।’ ये पंक्तियाँ प्रभावी सिद्ध होती हैं क्योंकि जिसे हम प्यार करते हैं उस प्रिय व्यक्ति को जो कुछ भी अच्छा लगता है वह अस्वीकार करना असंभव होता है।

(viii) कविता पसंद आने के कारण : कविता द्वारा हमें जीवन के सुख-दुख, संघर्ष, अवसाद आदि को सहर्ष स्वीकार करने की प्रेरणा मिलती है। अपने प्रिय व्यक्ति का प्रभाव अँधेरी गुफाओं में भी सहारा बनता है। उसका स्नेह हमें कभी कमजोर भी बनाता है। भविष्य में अनहोनी हो जाने का डर भी इसीलिए अत्यधिक प्रेम के कारण ही सताता है। कविता के ऐसे भाव दिल को छू जाते हैं।

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साहित्य संबंधी सामान्य ज्ञान

5. जानकारी दीजिए :

प्रश्न अ.
मुक्तिबोध जी की कविताओं की विशेषताएँ –
…………………………………………………
…………………………………………………
उत्तर :

  • प्रगतिवादी दृष्टिकोण
  • जीवन से जुड़ी कविता के सर्जक
  • शोषितों से गहरा लगाव
  • प्रतीक विधान में नयापन

प्रश्न आ.
मुक्तिबोध जी का साहित्य –
उत्तर :
काव्य कृतियाँ :

  • चाँद का मुँह टेढ़ा है।
  • भूरी – भूरी खाक धूल

आलोचना :

  • तार सप्तक के कवि
  • कामायनी – एक पुनर्विचार
  • भारतीय इतिहास और संस्कृति
  • नई कविता का आत्मसंघर्ष और अन्य निबंध
  • नए साहित्य का सौंदर्य शास्त्र

कहानी संग्रह :

  • विपात्र
  • सतह से उठता आदमी

6.
प्रश्न अ.
निम्नलिखित काव्यांश (पंक्तियों) में उद्धृत अलंकार पहचानकर लिखिए –

(a) कूलन में केलिन में, कछारन में, कुंजों में
क्यारियों में, कलि-कलीन में बगरो बसंत है।
उत्तर :
(‘क’ आवृत्ति) – अनुप्रास अलंकार

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(b) केकी-रख की नुपूर-ध्वनि सुन।
जगती-जगती की मूक प्यास।
उत्तर :
यमक अलंकार – जगती – जगती,
(1) जगती – जागना,
(2) जगती – जगत

प्रश्न आ.
निम्नलिखित अलंकारों से युक्त पंक्तियाँ लिखिए –
(a) वक्रोक्ति
…………………………………………………….
…………………………………………………….
उत्तर :
(i) मैं सुकमारिनाथ बन जोगू।
(ii) कौं तुम? है घनश्याम हम।

(b) श्लेष
…………………………………………………….
…………………………………………………….
उत्तर :
(i) रहिमन पानी राखिए, बिन पानी सब सून। – शब्द श्लेष
पानी गए न ऊबरें, मोती मानुष चून।
पानी शब्द का प्रयोग तीन बार लिया गया है। दूसरी पंक्ति में पानी का अर्थ मोती के संदर्भ में चमक या कांति है तो मनुष्य के संदर्भ में इज्जत और ‘चून’ के संदर्भ में जल है।

(ii) जो रहीम गति दीप की कुल कपूत गति सोय।
बारे उजियारे करै, बढे अँधेरा होय – अर्थ श्लेष
बारे का अर्थ – जलाना और बचपन
बढ़े का अर्थ – बुझने पर और बड़े होने पर

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कृतिपत्रिका
(अ) पद्यांश पढ़कर दी गई सूचनाओं के अनुसार कृतियाँ कीजिए :

पद्यांश : जिंदगी में जो कुछ है, ………………… खिलता वह चेहरा है ! (पाठ्यपुस्तक पृष्ठ क्र. 61)

प्रश्न 1.
संजाल पूर्ण कीजिए :
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उत्तर:
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प्रश्न 2.
आकृति पूर्ण कीजिए :
आकृति पूर्ण कीजिए :
(i) गरीबी के लिए प्रयुक्त विशेषण है :
(ii) कवि अपने उस प्रिय के साथ अपने संबंध इस तरह बताता है :
(iii) कवि अपने दिल की तुलना इससे करता है :
(iv) कवि ने अपने प्रिय की तुलना इससे की है :
उत्तर:
(i) गरवीली
(ii) गहरा
(iii) मीठे पानी के झरने से
(iv) चाँद से

प्रश्न 3.
पद्यांश का भावार्थ अपने शब्दों मे लिखिए।
उत्तर :
कवि कहता है कि मेरे इस जीवन में जो कुछ भी है, जैसा भी है, उसे मैंने पूरी प्रसन्नता के साथ स्वीकार किया है। वह इस कारण से, कि जो कुछ भी मेरा है, चाहे वह अभाव हो या संघर्ष ही क्यों न हो, वह सब तुम्हें प्यारा है और जो तुम्हे प्रिय लगता है, वही मेरे लिए प्रसन्नता का सबसे बड़ा कारण बन गया है।

कवि के जीवन में ऐसी निर्धनता है, जिस पर गर्व किया जा सके। गर्व इसलिए कि स्वाभिमान के साथ जीने का सुख इस में निहित (include) है। अभावों के चलते मिलने वाले जीवन के जो गंभीर अनुभव है, विचारों की जो संपन्नता है, विचारों की संपन्नता के कारण उससे मिली हुई जो आंतरिक मजबूती है और हृदय में उमड़ने वाली प्रेम की जो अविरल नदी है, ये सभी हमारे अपने निजी है।

हमारे जीवन के प्रत्येक क्षण में जो सत्य है, हर दिन हमारे साथ जो घटित होता है, लगातार घटता रहता हैं, उन सब में तुम्हारी ही तरल संवेदना बसी हुई है। तुम मेरे हर सुख-दुःख में आत्मा से सहभागिनी हो इसलिए इन सब चीजों को प्रसन्नता के साथ स्वीकारने की चाहत है।

कवि कहते हैं कि तुम्हारे साथ मेरा न जाने कैसा रिश्ता नाता है कि मैं अपने भीतर समाए हुए तुम्हारे प्रेममय जल को जितना बाहर निकालता हूँ, वह पुन: अंत:करण में भर आता है। ऐसा प्रतीत होता है कि वहाँ पर प्रेम का सतत बहने वाला कोई झरना ही है या मीठे और शीतल जल का कोई स्त्रोत ही बसा हुआ है। वह कभी रीता नहीं होता है। इधर मेरे अंदर तो प्रेम का ऐसा अटूट प्रवाह है और उधर आकाश में जैसे चंद्रमा रातभर अपनी चाँदनी बरसाता रहता है, ठीक वैसे ही तुम्हारा चेहरा मुझपर स्नेह की अखंड वर्षा करता रहता है।

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(आ) पद्यांश पढ़कर दी गई सूचनाओं के अनुसार कृतियाँ कीजिए :

पद्यांश : सचमुच मुझे दंड दो कि भूलूँ मैं, …………… आत्मीयता बरदाश्त नहीं होती है !! (पाठ्यपुस्तक पृष्ठ क्र. 62)

प्रश्न 1.
कृति पूर्ण कीजिए :
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उत्तर :
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उत्तर :
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प्रश्न 2.
कारण लिखिए :
कवि स्वयं के लिए दंड माँग रहा है क्योंकि
(i) …………………………………….
(ii) …………………………………….
उत्तर :
(i) अपनी प्रियतमा को भूलने का दंड उसे सहर्ष स्वीकार है।
(ii) ममता के भीतर छिपी कोमलता उसे अंदर ही अंदर पीड़ा पहुँचाती है।

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प्रश्न 3.
प्रस्तुत पद्यांश का भावार्थ अपने शब्दों में लिखिए:
उत्तर:
प्रस्तुत पद्यांश कवि श्री. गजानन माधव मुक्तिबोध’ द्वारा लिखित कविता ‘सहर्ष स्वीकारा है’ से लिया गया है।

कवि अपने प्रिय स्वरूपा को भूलना चाहता है। आप मुझे सजा दीजिए, श्राप दीजिए कि मैं आपको भूल जाऊँ। अनंत अंधकार वाली अमावस्या में डूब जाऊँ। वह उस अंधकार को अपने शरीर व हृदय पर झेलना चाहता है। इसका कारण यह है कि प्रिय के स्नेह के उजाले ने उसे घेर लिया है।

ममता रूपी बादलों की कोमलता ही अब उनके लिए दर्द बन गई है। मेरे अंतरमन में चुभने लगी है। इसके कारण मेरी अंतरात्मा कमजोर और क्षमताहीन हो गई है। जब मैं भविष्य के बारे में सोचता हूँ तो मुझे डर लगने लगता है कि कभी उनके प्रभाव से अलग होना पड़ा तो वह अपना अस्तित्व कैसे बचाए रख सकेगा। अब उसे उसका बहलाना-सहलाना सहन नहीं होता।

कवि कहता है कि मैं अपनी प्रियतमा के स्नेह से दूर होना चाहता हूँ। वह उसी से दंड की याचना करता है।

वह ऐसा दंड चाहता है कि प्रियतमा के न होने से वह पाताल की अँधेरी गुफाओं व सुरंगों में खो जाए। कवि दोहराते हैं कि मेरे लापता हो जाने पर भी तुम्हारा ही सहारा मेरे पास रहेगा। विस्मृति में भी स्मृति का अंश रहता ही है। वे कहते है कि जो कुछ भी मेरा है, या जो ऐसा प्रतीत होता है कि वह मेरे जैसा ही है। मेरे जैसा होता हुआ संभव लगता है। वह सब तुम्हारे ही कारण है। तुम्हारे कार्यों के घेरे में है। तुम्हारे कार्यों की समृद्धि का फल है।

अब तक जीवन में जो कुछ था और जो कुछ भी है वह सब मैंने प्रसन्नतापूर्वक स्वीकार किया है क्योंकि जो कुछ भी मेरा है, वह तुम्हें प्यारा है।

(इ) पद्यांश पढ़कर दी गई सूचनाओं के अनुसार कृतियाँ कीजिए :

पद्यांश : सचमुच मुझे दंड दो कि हो जाऊँ …………… वह तुम्हें प्यारा है। (पाठ्यपुस्तक पृष्ठ क्र. 62)

प्रश्न 1.
लिखिए :
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उत्तर :
Maharashtra Board Class 11 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 12 सहर्ष स्वीकारा है 8

(ii) लापता होने पर भी कवि को यह आशा है –
उत्तर :
लापता होने पर भी कवि को यह आशा है कि उसकी प्रियतमा का सहारा उसे मिलेगा।

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प्रश्न 2.
निम्न गलत विधान पद्यांश के आधार पर सही करके लिखिए :
(i) कवि अपनी प्रियतमा को दंड देना चाहता है।
उत्तर :
कवि अपनी प्रियतमा से दंड पाना चाहता है।

(ii) कवि ने जीवन में वही स्वीकारा जो उसे प्रिय था।
उत्तर :
कवि ने जीवन में उसे स्वीकारा जो उसकी प्रियतमा को प्रिय था।

प्रश्न 3.
पद्यांश का भावार्थ अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तरः
प्रस्तुत पद्यांश कवि श्री. गजानन माधव मुक्तिबोध’ द्वारा लिखी कविता ‘सहर्ष स्वीकारा है’ से लिया गया है। कवि कहता है कि मैं अपनी प्रियतमा के स्नेह से दूर होना चाहता हूँ। वह उसी से दंड की याचना करता है। वह ऐसा दंड चाहता है कि प्रियतमा के न होने से वह पाताल की अँधेरी गुफाओं व सुरंगों में खो जाए। कवि दोहराते हैं कि मेरे लापता हो जाने पर भी तुम्हारा ही सहारा मेरे पास रहेगा।

विस्मृति में भी स्मृति का अंश रहता ही है। वे कहते हैं कि जो कुछ भी मेरा है, या जो ऐसा प्रतीत होता है कि वह मेरे जैसा ही है, मेरे जैसा होता हुआ संभव लगता है; वह सब तुम्हारे ही कारण है। तुम्हारे कार्यों के घेरे में है। तुम्हारे कार्यों की समृद्धि का फल है। अब तक जीवन में जो कुछ था और जो कुछ भी है वह सब मैंने प्रसन्नतापूर्वक स्वीकार किया है क्योंकि जो कुछ भी मेरा है, वह तुम्हें प्यारा है।

सहर्ष स्वीकारा है Summary in Hindi

सहर्ष स्वीकारा है कवि परिचय :

गजानन माधव मुक्तिबोध’ जी का जन्म 13 नवंबर 1917 को शिवपुरी जिला मुरैना ग्वालियर (मध्य प्रदेश) में हुआ था। आपकी प्रारंभिक शिक्षा उज्जैन में हुई। 1938 में बी.ए. पास करने के पश्चात आप उज्जैन के मॉडर्न स्कूल में अध्यापक हो गए।

1954 में एम.ए. करने पर राजनाँद गाँव के दिग्विजय कॉलेज में प्राध्यापक पद पर नियुक्त हुए। यहाँ रहते हुए उन्होंने अंग्रेजी, फ्रेंच, तथा रुसी उपन्यासों के साथ जासूसी उपन्यासों, वैज्ञानिक उपन्यासों, विभिन्न देशों के इतिहास तथा विज्ञान विषयक साहित्य का गहन अध्ययन किया।

आप नई कविता के सर्वाधिक चर्चित कवि रहे हैं। प्रकृति प्रेम, सौंदर्य, कल्पनाप्रियता के साथ सर्वहारा वर्ग के आक्रोश तथा विद्रोह के विविध रूपों का यथार्थ चित्रण आपके काव्य की विशेषता है। 1962 में उनकी अंतिम रचना ‘भारत : इतिहास और संस्कृति’ प्रकाशित हुई। मुक्तिबोध जी की मृत्यु 1964 में हुई।

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प्रमुख रचनाएँ : कविता संग्रह : ‘चाँद का मुँह टेढ़ा है’, ‘भूरी-भूरी खाक धूल’ तथा तारसप्तक में प्रकाशित रचनाएँ।
कहानी संग्रह : काठ का सपना, सतह से उठता आदमी
उपन्यास : विपात्र
आलोचना : कामायनी – एक पुनर्विचार, नई कविता का आत्मसंघर्ष, नए साहित्य का सौंदर्यशास्त्र, समीक्षा की समस्याएँ।
इतिहास : भारत : इतिहास और संस्कृति
रचनावली : मुक्तिबोध रचनावली (सात खंड)

सहर्ष स्वीकारा है काव्य परिचय :

प्रस्तुत नई कविता ‘प्रतिनिधि कविताएँ’ काव्य-संग्रह से ली गई है। एक होता है – स्वीकारना और दूसरा होता है – सहर्ष स्वीकारना यानी खुशी-खुशी स्वीकार करना। यह कविता जीवन के सब सुख-दु:ख, संघर्ष-अवसाद, उठा-पटक को सम्यक भाव से स्वीकार करने की प्रेरणा देती है। कवि को जहाँ से यह प्रेरणा मिली कविता प्रेरणा के उस उत्स (spring) तक भी हमको ले जाती है।

उस विशिष्ट व्यक्ति या सत्ता के इसी ‘सहजता’ के चलते उसको स्वीकार किया था। कुछ इस तरह स्वीकार किया था कि आज तक सामने नहीं भी है तो भी आस-पास उसके होने का एहसास है।

सहर्ष स्वीकारा है सारांश :

कवि कहता है कि मेरे इस जीवन में जो कुछ भी है, उसे मैं खुशी से स्वीकार करता हूँ। इसलिए मेरा जो कुछ भी है, वह उसको (माँ या प्रिया) अच्छा लगता है। मेरी स्वाभिमानयुक्त गरीबी, जीवन के गंभीर अनुभव, विचारों का वैभव, व्यक्तित्व की दृढ़ता, मन में बहती भावनाओं की नदी – ये सब मौलिक हैं तथा नए हैं। इनकी मौलिकता का कारण यह है कि मेरे जीवन में हर क्षण जो कुछ घटता है, जो कुछ जाग्रत है, उपलब्धि है, वह सब कुछ तुम्हारी प्रेरणा से हुआ है।

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कवि कहता है कि तुम्हारे हृदय के साथ न जाने कौन सा संबंध है या न जाने कैसा नाता है कि मैं अपने भीतर समाए हुए तुम्हारे प्रेममय जल को जितना बाहर निकालता हूँ, वह पुन: अंत:करण में भर आता है। ऐसा लगता है मानो दिल में कोई झरना बह रहा है।

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वह स्नेह मीठे पानी के स्रोत के समान है जो मेरे अंतर्मन को तृप्त करता रहता है। इधर मन में प्रेम है और ऊपर से तुम्हारा चाँद जैसा मुस्कराता हुआ सुंदर चेहरा अपने अद्भुत सौंदर्य के प्रकाश से मुझे नहलाता रहता है। यह स्थिति उसी प्रकार की है जिस प्रकार आकाश में मुस्कराता हुआ चंद्रमा पृथ्वी को अपने प्रकाश से नहलाता रहता है।

कवि अपने प्रिय स्वरूपा को भूलना चाहता है। वह चाहता है कि प्रिय उसे भूलने का दंड दे। वह इस दंड को भी सहर्ष स्वीकार करने के लिए तैयार है। प्रिय को भूलने का अंधकार कवि के लिए दक्षिणी ध्रुव पर होने वाली छह मास की रात्रि के समान होगा। वह उस अंधकार में लीन हो जाना चाहता है।

वह उस अंधकार को अपने शरीर व हृदय पर झेलना चाहता है। इसका कारण यह है कि प्रिय के स्नेह के उजाले ने उसे घेर लिया है। प्रिय की ममता या स्नेह रूपी बादल की कोमलता सदैव मेरे मन को अंदर ही – अंदर पीड़ा पहुँचाती है। इसके कारण मेरी अंतरात्मा कमजोर और क्षमताहीन हो गई है।

जब मैं भविष्य के बारे में सोचता हूँ तो मुझे डर लगने लगता है कि कभी उसे अपनी प्रियतमा (माँ या प्रिया) के प्रभाव से अलग होना पड़ा तो वह अपना अस्तित्व कैसे बचाए रख सकेगा। अब उसे उसका बहलाना-सहलाना और रह-रहकर अपनापन जताना सहन नहीं होता। वह आत्मनिर्भर बनना चाहता है। कवि कहता है कि मैं अपनी प्रियतमा (सबसे प्यारी स्त्री) के स्नेह से दूर होना चाहता हूँ। वह उसी से दंड की याचना करता है।

वह ऐसा दंड चाहता है कि प्रियतमा के न होने से वह पाताल की अँधेरी गुफाओं व सुरंगो में खो जाए। ऐसी जगहों पर स्वयं का अस्तित्व भी अनुभव नहीं होता या फिर वह धुएँ के बादलों के समान गहन अंधकार में लापता हो जाए जो उसके न होने से बना हो। ऐसी जगहों पर भी उसे अपनी प्रियतमा का ही सहारा है।

उसके जीवन में जो कुछ भी है या जो कुछ उसे अपना-सा लगता है, वह सब उसके कारण है। उसकी सत्ता, स्थितियाँ भविष्य की उन्नति या अवनति की सभी संभावनाएँ प्रियतमा के कारण है। कवि का हर्ष-विषाद, उन्नति-अवनति सदा उससे ही संबंधित है। कवि ने हर सुख-दु:ख, सफलता-असफलता को प्रसन्नतापूर्वक इसलिए स्वीकार किया है क्योंकि प्रियतमा ने उन सबको अपना माना है। वे कवि के जीवन से पूरी तरह जुड़ी हुई है।

सहर्ष स्वीकारा है शब्दार्थ :

  • सहर्ष = खुशी – खुशी (readily),
  • स्वीकारा = मन से मानना (accept),
  • गरवीली = स्वाभिमानी (self-respect),
  • गंभीर = गहरा (grave),
  • अनुभव = व्यावहारिक ज्ञान (experience),
  • विचार वैभव = अच्छे विचार, विचारों की संपन्नता (glorious thought),
  • दृढ़ता = मजबूती (solidity),
  • सरिता = नदी (river),
  • अभिनव = नया (new),
  • मौलिक = वास्तविक, मूलभूत (basic),
  • जाग्रत = जागा हुआ (awake),
  • अपलक = निरंतर, एकटक (unwinking),
  • संवेदन = अनुभूति (perception),
  • उँडेलना = बाहर निकालना (to outpour),
  • सोता = झरना (spring), Maharashtra Board Class 11 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 12 सहर्ष स्वीकारा है
  • दंड = सजा (punishment),
  • दक्षिण ध्रुवी अंधकार = दक्षिण ध्रुव पर ढकने से घिरा हुआ (south pole darkness),
  • आच्छादित = छाया हुआ, ढका हुआ (clad),
  • रमणीय = मनोरम (delightful),
  • उजेला = प्रकाश (light),
  • ममता = अपनापन, स्नेह (motherly love),
  • मँडराती = आसपास घूमना (move around),
  • पिराता = दर्द करना (painful),
  • अक्षम = अशक्त (weak),
  • भवितव्यता = भविष्य में घटने वाली घटनाएँ (future),
  • बहलाती = मन को प्रसन्न करती (recreate),
  • सहलाती = दर्द को कम करती हुई (stroke),
  • पाताली अँधेरा = धरती की गहराई में पाई जाने वाली धुंध, गुहा = गुफा (cave),
  • विवर = बिल, गड्ढा (centesis),
  • लापता = गायब (missing),
  • कारण = मूल प्रेरणा (reason),
  • घेरा = फैलाव (enclosure),
  • वैभव = समृद्ध (splendour)
  • गरबीली = स्वाभिमानी
  • मौलिक = मूलभूत
  • अपलक = एकटक
  • संवेदन = अनुभूति
  • सोता = झरना Maharashtra Board Class 11 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 12 सहर्ष स्वीकारा है
  • परिवेष्टित = चारों ओर से घिरा हुआ, ढका हुआ
  • पाताली अंधेरा = धरती की गहराई में पाई जाने वाली धुंध
  • विवर = बिल, गड्ढा

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